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________________ (२०) ब्राह्मणो एवं यज्ञोपवीत की उत्पत्ति । (२१) भगवान् ऋषभदेव का धर्म परिवार, निर्वाणोत्सव । (२२) भरत का वैराग्य, केवलज्ञान एवं निर्वाण भाव, भाषा और शैली की दृष्टि से यह उत्कृष्ट महाकाव्य है। ४. त्रिषष्टिस्मृति शास्त्र" प्रस्तुत ग्रन्थ के रचयिता प्रसिद्ध पंडित आशाधर हैं । इन्होंने लगभग १९ ग्रन्थों की रचना की है जिनमें कई अनुपलब्ध हैं । प्रस्तुत 'त्रिषष्टिस्मृतिशास्त्र' कृति इनकी महत्त्वपूर्ण काव्य-कृति है । इसमें त्रेसठ शलाका महापुरुषों के जीवन चरित अति संक्षिप्त रूप में वर्णित हैं। यह श्रीमद् जिनसेनाचार्य एवं गुणभद्र के महापुराण का सार रूप ग्रन्थरत्न है। इसको पढ़ने से महापुराण का सारा कथा भाग स्मृति गोचर हो जाता है। ग्रन्थकार ने इस पर स्वोपज्ञ पंजिका' टीका लिखी है। सम्पूर्ण ग्रन्थ की रचना चौबीस अध्यायों में विभक्त है। समस्त ग्रन्थ की रचना सुन्दर अनुष्टुप् छन्द में की गई है। इस ग्रन्थ का प्रमाण ४८० श्लोक है। जो नित्य स्वाध्याय के लिये रचा गया था । इसका रचनाकाल सं० १२९२ है । Shri Ashtapad Maha Tirth ५. आदिपुराण- उत्तरपुराण इस ग्रन्थ का अपरनाम 'ऋषभदेवचरित' तथा 'ऋषभनाथचरित' भी है। इसमें बीस सर्ग हैं। इन दोनों कृतियों के रचयिता भट्टारक सकलकीर्ति हैं । ६. रायमल्लाभ्युदय इसके रचयिता उपाध्याय पद्मसुन्दर हैं जो नागोर तपागच्छ के बहुत बड़े विद्वान् थे । ये अपने युग के एक प्रभावक आचार्य थे। उन्होंने दिगम्बर सम्प्रदाय के रायमल्ला (अकबर के दरबारी सेठ) की अभ्यर्थना एवं प्रेरणा से उक्त काव्य ग्रन्थ की संरचना की थी, अतः इसका नाम 'रायमल्लाभ्युदय रखा गया। इस ग्रन्थ-रत्न में चौबीस तीर्थङ्करों का जीवन चरित्र महापुराण के अनुसार दिया गया है। इसकी हस्तलिखित प्रति उपलब्ध होती है जो खम्भात के 'कल्याणचन्द्र जैन पुस्तक भण्डार' में सुरक्षित है । ७. लघुत्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (१) प्रस्तुत ग्रन्थ के रचयिता मेघविजय उपाध्याय हैं। इन्होंने यद्यपि इस ग्रन्थ की निर्मिति आचार्य हेमचन्द्र के बृहत्काय ग्रन्थ 'त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित्र' के आधार पर की है, तथापि अनेक प्रसंग एकदम नवीन ग्रहण किये हैं जो हेमचन्द्राचार्य की कृति में नहीं पाये जाते । इस कृति के नाम के पीछे दो बातों का अनुमान किया जा सकता है। एक तो यह कि प्रस्तुत कृति आचार्य हेमचन्द्र की त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित को सामने रखकर रची गई है अथवा आचार्य हेमचन्द्र ने जिन प्रसंगों को छोड़ दिया है, उन प्रसंगों को शामिल कर लेने पर भी कलेवर की दृष्टि से लघुकाय इस कृति का नाम 'लघुत्रिषष्टिशलाका' रखने में आया हो। यह कृति संक्षेप रुचिवालों के लिये अति उपकारक है। इसका ग्रन्थमान ५००० श्लोक प्रमाण है। ये तीनों ही ग्रन्थ विषष्टिशलाका पुरुष चरित से प्रभावित रचनाएँ हैं। इनके अतिरिक्त कुछ अन्य भी रचनाएं हैं जो त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित एवं महापुराण पर आधारित हैंलघु महापुराण या लघु त्रिषष्टि लक्षण महापुराण चन्द्रमुनि विरचित । ५३ माणिक्यचन्द्र दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला, बम्बई, १९३७, जिनरत्नकोश, पृ० १६५ । 241 Rushabhdev: Ek Parishilan
SR No.009857
Book TitleAshtapad Maha Tirth 01 Page 249 to 335
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajnikant Shah, Kumarpal Desai
PublisherUSA Jain Center America NY
Publication Year2011
Total Pages87
LanguageHindi, Sanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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