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________________ Shri Ashtapad Maha Tirth सम्राट भरत के वर्णन में उन्होंने भरत की दिग्विजय का साङ्गोपाङ्ग चित्र उपस्थित किया है। बाहुबली के साथ हुए अहिंसक युद्ध में दृष्टियुद्ध, जलयुद्ध और मल्लयुद्ध का वर्णन किया गया है। द्वादशवें सर्ग में जयकुमार व सुलोचना का वर्णन है। जयकुमार का एकसौ आठ राजाओं के साथ दीक्षा ग्रहण करने आदि का वर्णन है। यह वर्णन श्वेताम्बर-परम्परा में नहीं मिलता। इसी सर्ग के अन्त में ८४ गणधरों के नाम, शिष्य परम्परा व भगवान् के संघ का वर्णन तथा भगवान् ऋषभदेव के मोक्ष पधारने का उल्लेख किया गया है। त्रयोदश सर्ग के प्रारम्भ में चक्रवर्ती भरत का पुत्र अर्ककीर्ति को राज्य देकर दीक्षा लेना तथा अन्त में वृषभसेन आदि गणधरों के साथ कैलास पर्वत पर मोक्ष प्राप्त करने का वर्णन है। तत्पश्चात् सूर्यवंशी और चन्द्रवंशी राजाओं का विस्तृत समुल्लेख करते हुए ऋषभदेव चरित्र की परिसमाप्ति की गई है। ३. त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित महाकाव्य५२ यह ग्रन्थ महाकाव्य की कोटि में आता है। काव्य के जो भी लक्षण हैं, वे इसमें पूर्वतया विद्यमान हैं। इसकी रचना कलिकालसर्वज्ञ श्रीमद हेमचन्द्राचार्य ने की है। इसकी भाषा संस्कृत है। अलंकारों, उपमाओं और सुभाषितों का यह आकर है। इसमें वेसठ उत्तम पुरुषों के जीवन-चरित्र पर पर्याप्त प्रकाश डाला गया है। शलाका पुरुषों के अतिरिक्त इसमें सैकड़ों अवान्तर कथाओं का भी वर्णन है। उक्त ग्रन्थ दस पर्यों में विभक्त है। प्रथम पर्व में विस्तृत रूप से भगवान् ऋषभदेव और भरत चक्रवर्ती का वर्णन किया गया है। संक्षेप में ऋषभदेव भगवान् की निम्न घटनाओं का इस ग्रन्थ में चित्रण हुआ है (१) भगवान् ऋषभदेव के बारह पूर्व भवों का वर्णन। (२) प्रथम कुलकर विमलवाहन का पूर्व भव। (३) भगवान् ऋषभदेव की माता के स्वप्न एवं उनका फल । (४) भगवान् ऋषभदेव का जन्म व जन्मोत्सव । (५) नामकरण, वंशस्थापन एवं रूप वर्णन। (६) सुनन्दा के भ्राता की अकाल मृत्यु। (७) भगवान् का विवाह, सन्तानोत्पत्ति । (८) राज्याभिषेक, कलाओं की शिक्षा। (९) वसन्तवर्णन, वैराग्य का कारण । (१०) महाभिनिष्क्रमण। (११) साधनावस्था। (१२) श्रेयांसकुमार से इक्षुरस का पारणा। (१३) केवलज्ञान, समवसरण । (१४) माता मरुदेवी को केवलज्ञान और मोक्ष । (१५) चतुर्विध संघ-संस्थापना । (१६) भरत की दिग्विजय का वृत्तान्त । (१७) भरत-बाहुबली युद्ध । (१८) बाहुबली की दीक्षा, केवलज्ञान । (१९) परिवाजकों की उत्पत्ति । ५२ कलिकाल सर्वज्ञ श्रीमद् हेमचन्द्राचार्य विरचित, संपादक-मुनि चरणविजयजी, आत्मानन्द सभा, भावनगर (सौराष्ट्र) सन् १९३६ Rushabhdev : Ek Parishilan -35 240
SR No.009857
Book TitleAshtapad Maha Tirth 01 Page 249 to 335
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajnikant Shah, Kumarpal Desai
PublisherUSA Jain Center America NY
Publication Year2011
Total Pages87
LanguageHindi, Sanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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