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________________ ॥ आदिपुराण ॥ प्रास्ताविक : आदिपुराण संस्कृत-साहित्य का एक अनुपम रत्न है। इसके कर्ता जिनसेनाचार्य हैं। ऐसा कोई विषय नहीं है जिसका इसमें प्रतिपादन न हो। यह पुराण है, महाकाव्य है, धर्मकथा है, धर्मशास्त्र है, राजनीतिशास्त्र है, आचारशास्त्र है, और युग की आद्यव्यवस्था को बतलाने वाला महान् इतिहास है। * विषय-वस्तु : युग के आदिपुरुष श्री भगवान् ऋषभदेव और उनके प्रथम पुत्र सम्राट् भरत चक्रवर्ती आदिपुराण के प्रधान नायक हैं। इन्हीं से सम्पर्क रखने वाले अन्य कितने ही महापुरुषों की कथाओं का भी इसमें समावेश हुआ है। प्रत्येक कथानायक का चरित्र-चित्रण इतना सुन्दर हुआ है कि वह यथार्थता की परिधि को न लाँघता हुआ भी हृदयग्राही मालूम होता है। हरे-भरे वन, वायु के मन्द-मन्द झकोरे से थिरकती हुई पुष्पित-पल्लवित लताएँ, कलकल करती हुइ सरिताएँ, प्रफुल्ल कमलोद्भासित सरोवर, उत्तुंग गिरिमालाएँ, पहाड़ी, निर्झर, बिजली से शोभित श्यामल घनघटाएँ, चहकते हुए पक्षी, प्राची में सिन्दूररस की अरुणिमा को बिखेरने वाला सूर्योदय और लोक-लोचनाऽह्लादकारी चन्द्रोदय आदि प्राकृतिक पदार्थों का चित्रण कवि ने जिस चातुर्य पूर्वक किया है वह हृदय में भारी आह्लाद की अनुभूति कराता है। तृतीय पर्व में चौदहवें कुलकर श्री नाभिराज के समय गगनांगण में सर्वप्रथम घनघटा छायी हुई दिखती है, उसमें बिजली चमकती है, मन्द-मन्द गर्जना होती है, सूर्य की सुनहरी रश्मियों के सम्पर्क से उसमें रंग-बिरंगे इन्द्रधनुष्य दिखायी देते हैं, कभी मध्यम और कभी तीव्र वर्षा होती है, पृथ्वि जलमय हो जाती है, मयूर नृत्य करने लगते हैं, चिरसन्तप्त चातक सन्तोष की साँस लेते हैं, और प्रकृष्ट वारिधारा वसुधातल में व्याकीर्ण हो जाती है। इस प्राकृतिक सौन्दर्य का वर्णन कवि ने जिस सरसता और सरलता के साथ किया है वह एक अध्ययन की वस्तु है। अन्य कवियों के काव्य में आप यही बात क्लिष्टबुद्धिगम्य शब्दों से परिवेष्टित पाते हैं और इसी कारण स्थूलपरिधान से आवृत कामिनी के सौन्दर्य की भाँति वहाँ प्रकृति का सौन्दर्य अपने रूप में प्रस्फुटित नहीं हो पाता है, परन्तु यहाँ कवि के सरल शब्दविन्यास से प्रकृति की प्राकृतिक सुषमा परिधानावृत नहीं हो सकी है बल्कि सूक्ष्म...महीन वस्त्रावलि से सुशोभित किसी सुन्दरी के गात्र की अवदात आभा की भाँति अत्यन्त प्रस्फुटित हुई है। श्रीमती और वज्रजंघ के भोगोपभोगों का वर्णन भोगभूमि की भव्यता का व्याख्यान, मरुदेवी के गात्र की गरिमा, भगवान् ऋषभदेव के जन्म-कल्याणक का दृश्य, अभिषेककालीन जल का विस्तार, क्षीरसमुद्र Adipuran Vol. III Ch. 12-A, Pg. 708-715 Adipuran 326 -
SR No.009854
Book TitleAshtapad Maha Tirth 01 Page 001 to 087
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajnikant Shah, Kumarpal Desai
PublisherUSA Jain Center America NY
Publication Year2011
Total Pages87
LanguageHindi, Sanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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