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________________ Shri Ashtapad Maha Tirth हैं। केशरियानाथ पर जो केशर चढ़ाने की मान्यता लोक में विशेष रूप से प्रचलित है, वह नामसाम्य के कारण ही उत्पन्न हुई प्रतीत होती है। जैन पुराणों में भी ऋषभदेव की जटाओं का उल्लेख किया है।४८ ऋग्वेद में भगवान् ऋषभ की स्तुति केशी के रूप में की है। वहाँ कहा गया है- 'केशी, अग्नि, जल, स्वर्ग तथा पृथ्वी को धारण करता है। केशी विश्व के समस्त तत्त्वों का दर्शन कराता है, और केशी ही प्रकाशमान 'ज्ञान' ज्योति कहलाता है।४९ ऋग्वेद में उल्लिखित केशी व वातरशना मुनियों की तुलना भागवत पुराण में कथित वातरशना श्रमण ऋषि, उनके अधिनायक ऋषभ व उनकी साधनाओं के साथ करने योग्य है। ऋग्वेद के 'वातरशना मुनि' और भागवत पुराण में उल्लिखित 'वातरशना श्रमण ऋषि' तो एक ही परम्परा के वाचक हैं। इस कथन में तो तनिक भी संदेह को अवकाश नहीं रहता। परन्तु केशी का अर्थ केशधारी होता है, जिसका अर्थ तैत्तिरिय आरण्यक भाष्यकार आचार्य सायण ने 'केश स्थानीय किरणों का धारक' कहकर 'सूर्य' अर्थ निकाला है। प्रस्तुत सूक्त में जिन वातरशना साधुओं की साधना का उल्लेख है, उनसे इस अर्थ की कोई संगति नहीं बैठती। केशी, वस्तुतः वातरशना मुनियों के प्रधान नेता ही हो सकते हैं, जो मलधारी, मौनवृत्ति और उन्मत्तावस्था के रूप में उल्लिखित है, जिन्हें आगे के सूक्त में देवों के ऋषि व उपकारी, हितचिन्तक सखा कहा है। भागवतपुराण में वर्णित ऋषभदेव का जीवन चरित्र और उक्त केशी सम्बन्धी सूक्त का तुलनात्मक अध्ययन किसी एक व्यक्ति में पाये जाने वाले गुणों को प्रकट करता है। अन्यत्र केशी और ऋषभ के एक ही साथ का उल्लेख ऋग्वेद की एक ऋचा में भी प्राप्त होता है, जिसमें कहा है 'मुद्गल ऋषि की गायें (इन्द्रियों) जो जुते हुए दर्धर रथ (शरीर) के साथ दौड़ रही थीं वे मुद्गल ऋषि के सारथी ऋषभ जो शत्रु-विनाश (कर्म रूपी शत्रु) के लिये नियुक्त, थे, उनके वचन से अपने स्थान पर लौट आयीं।' इस प्रकार ऋग्वेद से ही केशी और ऋषभ के एकत्व का पूर्णतया समर्थन प्राप्त हो जाता है। वातरशना मुनि, निर्ग्रन्थ साधुओं के साथ और केशी, भगवान् ऋषभदेव के साथ एकीकरण को प्राप्त होते हैं। * भागवत में ऋषभावतार का चित्रण : श्रीमद्भागवत में भक्ति की भागीरथी का अमर स्रोत प्रवाहित है। श्री वल्लभाचार्य भागवत को महर्षि व्यासदेव की समाधि भाषा कहते हैं। इसका तात्पर्य यह है कि व्यासजी ने भागवत् के तत्त्वों का वर्णन समाधि दशा में अनुभूत करके किया था। रामानुजाचार्य, वल्लभाचार्य, मध्वाचार्य, निम्बार्काचार्य, चैतन्य महाप्रभु प्रभृति विज्ञों की भक्ति साधनाओं का मूल आधार भागवत ही था। वैष्णव परम्परा का बहुमान्य और सर्वत्र अतिप्रसिद्ध ग्रन्थ भागवत है, जिसे भागवत-पुराण भी कहते ४७ राजस्थान के उदयपुर जिले का एक प्रसिद्ध तीर्थ जो 'केसरिया तीर्थ' के रूप में प्रसिद्ध है। वह दिगम्बर, श्वेताम्बर एवं वैष्णव आदि सभी सम्प्रदाय वालों को समान रूप से मान्य है। ४८ (क) वातोद्धता जटास्तस्य रेजुराकुलमूर्तयः -पद्मपुराण ३।२८८ (ख) स प्रलम्बजटाभारभ्राजिष्णुः -हरिवंशपुराण ६।२०४ ४९ केश्यग्नि विषं केशी विभति रोदसी। केशी विश्व स्वर्दुशे केशीदं ज्योतिरूच्यते। ऋग्वेद १०।१३६।१ ५० मुनिर्देवस्य देवस्य सोकृत्याय सखा हितः। -ऋग्वेद १०।१३६।४ ५१ साहित्य और संस्कृति-लेखक देवेन्द्र मुनि, प्रकाशक-भारतीय प्रकाशन, वाराणसी। -36 259 Rushabhdev : Ek Parishilan
SR No.009853
Book TitleAshtapad Maha Tirth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajnikant Shah, Kumarpal Desai
PublisherUSA Jain Center America NY
Publication Year2011
Total Pages528
LanguageHindi, Sanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size178 MB
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