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________________ सूत्रकृतांगनियुक्ति" में कहा है कि भगवान् के प्रेरणाप्रद उद्बोधन से प्रबुद्ध हुए अठानवें पुत्र महाप्रभु ऋषभ के चरणों में दीक्षित हो गये। जिनत्व की साधना के, अमृत-पथ के यात्री हो गये । उनका जीवन बदल गया और वे आत्म-राज्य के राजा हो गये । २. स्थानांगसूत्र इस सूत्र की रचना कोश शैली में की गई है। इनमें संख्याक्रम से जीव, पुद्गल आदि की स्थापना होने से इसका नाम स्थान है बौद्धों का अंगुत्तरनिकाय भी इसी प्रकार की शैली में ग्रथित हुआ है। इस आगम में एक से दस स्थानों तक का वर्णन है । यद्यपि इसमें भगवान् ऋषभदेव का क्रमबद्ध वर्णन नहीं मिलता है, तथापि यत्र-तत्र उनका उल्लेख प्राप्त होता है और उनके जीवन की महत्त्वपूर्ण विशेषताओं का भी पता चलता है। जैसे अन्तक्रियाओं का वर्णन करते हुए भरत चक्रवर्ती व मरूदेवी माता का दृष्टान्त के रूप में नामोल्लेख किया है। भरत चक्रवर्ती लघुकर्मा, प्रशस्त मन-वचन-काया वाले, दुःखजनक कर्म का क्षय करने वाले, बाह्य व आभ्यन्तर जन्य पीड़ा से रहित, चिरकालिक प्रव्रज्या रूप करण द्वारा सिद्ध, बुद्ध, मुक्त हुए । चौथी अन्तक्रिया में मरूदेवी माता का दृष्टान्त दिया गया है, वे लघुकर्मा एवं अल्पपर्याय से परीषह - उपसर्गों से रहित होकर सिद्ध, बुद्ध हुई । २० Shri Ashtapad Maha Tirth चतुर्थ स्थान के तृतीय उद्देशक में भरत नरेश को 'उदितोदित' कहा गया है । २१ प्रथम एवं अन्तिम तीर्थङ्करों के मार्ग पांच कारणों से दुर्गम बताये हैं- कठिनाई से कहा जाने वाला, दुर्विभाज्य वस्तुत्व को विभागशः संस्थापन करना दुःशक्य है, दुर्दर्श-कठिनाई से दिखाया जाने वाला, दुस्तितिक्ष अर्थात् कठिनाई से सहा जाने वाला, दुरनुचर- कठिनाई से आचरण किया जाने वाला । पञ्चम स्थान के द्वितीय उद्देशक में कौशल देशोत्पन्न ऋषभदेव भगवान्, चक्रवर्ती सम्राट् भरत, बाहुबली, एवं सुन्दरी की ऊँचाई पांचसौ धनुष की कही गई है। षष्ठम स्थान में चतुर्थ कुलकर अभिचन्द्र की ऊँचाई छहसौ धनुष और सम्राट भरत का राज्यकाल लक्ष पूर्व तक का वर्णित किया है। सप्तम स्थान में वर्तमान अवसर्पिणी के सात कुलकर विमलवाहन, चक्षुष्मान्, यशस्वान, अभिचन्द्र, प्रसेनजित्, मरूदेव, नाभि तथा इनकी भार्याओं के नाम- चन्द्रयशा, चन्द्रकान्ता, सुरूपा, प्रतिरूपा, चक्षुकान्ता श्रीकान्ता एवं मरुदेवी का उल्लेख किया है। विमलवाहन कुलकर के समय उपभोग्य सप्त कल्पवृक्ष थेमत्तांगक, भृङ्ग, चित्रांग, चित्ररस, मण्यङ्ग, अनग्न आदि । सम्राट भरत के पश्चात् आठ राजा सिद्ध-बुद्ध हुए- आदित्ययश, महायश, अतिबल, महाबल, तेजोवीर्य, कीर्तिवीर्य, दण्डवीर्य और जलवीर्य । नवम स्थान में विमलवाहन कुलकर की नौ सौ धनुष्य की ऊँचाई का वर्णन है तथा श्री ऋषभदेव के चतुर्विध संघ की स्थापना अवसर्पिणी काल के नौ कोटाकोटि सागरोपम प्रमाण काल व्यतीत होने पर हुई, उसका वर्णन है । १९ कामं तु सासणमिणं कहिय अड्डावयं मि उसभेणं । अाणउतिसुयाणं सोईणं ते वि पठवइया ।। - सूत्रकृतांगनियुक्ति ३९ १ उत्तराध्ययन ३६ । ५३ । २१ २ आवश्यकनियुक्ति गा. ३११ । ३ देखिए- लेखक का 'जैन आगमों में आश्चर्य' लेख । २० स्थानांगसूत्र, ४ स्थान, पं. ३० सू. २३५, पृ. १३३ - मुनि कन्हैयालाल सम्पादित, प्रकाशक- आगम अनुयोग, सांडेराव (राज.) सन् १९७२ वही, ४ स्थान, उ. ३ $227 Rushabhdev Ek Parishilan
SR No.009853
Book TitleAshtapad Maha Tirth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajnikant Shah, Kumarpal Desai
PublisherUSA Jain Center America NY
Publication Year2011
Total Pages528
LanguageHindi, Sanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size178 MB
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