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________________ ५. जब अपनी कमज़ोरीको मैंने बरदाश्त कर लिया। इतना ही नहीं-उसीमें भक्ति मान ली । ६. जब मैंने कुरूप चहरेकी ओर नफ़रत भरी नज़रसे देखा, मगर यह नहीं जाना कि नफ़रतका ही एक पर्दा यह कुरूपता है। ७. जब किसीसे अपनी तारीफ़ सुनकर मैंने समझा कि सचमुच मैने अच्छा काम किया है । दूसरोंकी तारीफ़को अच्छाईकी कसौटी मान लेनायह तो हद हो गई ! इस तरह सात अवसरोंपर मैने अपनेको क्षुद्र बनते देखा। सूफी सन्त ग़ज़्ज़ाली सफ़ियोंमें सबसे बड़ा दार्शनिक ग़ज़्ज़ाली हुआ है। एक दिन उसे लगा कि सारी सम्पत्तिको तिलाञ्जलि दे देनी चाहिए। वह कहता है'मैंने कर्मोपर ध्यान दिया तो मुझे मालूम हुआ कि सबसे मुख्य विद्यादान और अध्यापन कर्म हैं; लेकिन जिस वक़्त मुझे यह मालूम हुआ कि मैं कुछ ऐसी विद्याओंको पढ़ रहा हूँ जो मोक्षकी दृष्टिसे सार-रहित हैं तो मेरे आश्चर्यकी सीमा न रही। जब मैंने यह विचार किया कि दूसरोंको किस लिए उपदेश देता हूँ तो जाना कि दर असल ईश्वरीय कर्म करनेके बजाय मैं अब तक नामवरी और वाह-वाहीकी निरर्थक कामनासे प्रेरित था। एक ओर सांसारिक तृष्णा मुझे झमेले में डालना चाहती थी, दूसरी ओर धर्मकी ध्वनि मेरे कानोंमें कह रही थी-'उठो उठो ! तुम्हारे जीवनका अन्त निकट आ रहा है और तुम्हें अभी लम्बी यात्रा करनी है। तम्हारे कल्पित दानका अहंकार मिथ्या है । अगर तुम आज बन्धन काटना नहीं चाहते तो कब काटोगे? ___ग़ज्जालीके मनपर इन विचारोंका ऐसा प्रभाव पड़ा कि उसने धर्माचार्यका उच्चपद त्याग दिया और सीरिया चला गया। वहाँ उसने दो ५८ सन्त-विनोद
SR No.009848
Book TitleSant Vinod
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarayan Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages153
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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