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________________ प्रार्थना हे प्रभो, मेरी यह प्रार्थना नहीं है कि संकटके समय मेरी रक्षा करो, मैं तो केवल यह चाहता हूँ कि संकटोंसे डरकर भागू नहीं । मैं यह नहीं चाहता कि दुःख सन्तापसे मेरा चित्त व्यथित हो जाय तो तुम मुझे सान्त्वना दो, बल्कि यह कि मुझे दुःखोंपर विजय प्राप्त करनेकी शक्ति दो । आवश्यक सहायता न मिलनेपर हिम्मत न हारूँ, मेरा बल क्षीण न हो जाय, बस यही चाहता हूँ । व्यवहार में हानि उठानी पड़े, या लोग मुझे लूट लें, इसकी मुझे परवाह नहीं; लेकिन हिम्मत हारकर में यह कहते हुए रोने न बैठूं कि 'हाय मेरा सर्वस्व जाता रहा, अब मैं क्या करूँ ?' बस इतना ही चाहता हूँ । -- रवीन्द्रनाथ टैगोर जैसी भावना वैसी सिद्धि भगवान् बुद्धका कथन था कि जैसी भावना रखोगे वैसे बनोगे । उनके पास दो आदमी आये । एकने पूछा - 'महाराज, मेरे इस साथीको क्या गति होगी । यह कुत्ता सरीखे विचार और कर्म किया करता है । क्या अगले जन्म मे यह कुत्ता नहीं होगा ?' दूसरा बोला- 'यह बिलकुल बिल्ली सरीखा है । क्या अगले जन्म में यह बिल्ली नहीं होगा ?' बुद्ध बोले – 'भाइयो ! जैसे तुम्हारे संस्कार होंगे वैसा फल मिलेगा । जो किसीको कुत्ता समझता है वह स्वयं कुत्ता बनेगा; जो किसीको बिल्ली समझता है वह स्वयं बिल्ली बनेगा ।' वेतन - वृद्धि ! एक बार श्री रविशंकर महाराजको खबर हुई कि शिक्षकों में उग्र असन्तोष फैल रहा है और यदि उनके वेतनमे वृद्धि न हुई तो वे मनोयोग पूर्वक काम नहीं करनेवाले । इसलिए उन्होंने आश्रम के सब शिक्षकोंको सन्त-विनोद ५५
SR No.009848
Book TitleSant Vinod
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarayan Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages153
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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