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________________ राजा उस बुढ़ियाके पास पहुँचे और बोले, 'माता मुझे हक़की रोटी चाहिए ।' बुढ़ियाने कहा, 'राजन्, मेरे पास एक रोटी है, उसमें आधी हक़की है और आधी बेहक़की ।' राजाने पूछा - 'आधी बेहक़की कैसे ?" बुढ़िया ने बताया- 'एक दिन में चरखा कात रही थी। शामका वक़्त था अँधेरा हो चला था । इतनेमें एक जुलूस उधर से निकला । उसमें मशालें जल रही थीं । मैं अलग चिराग़ न जला, उन्हींकी रोशनी में कातती रही और आधी पौनी कात ली, आधी पौनी पहलेकी क़ती थी । उस पौनीसे आटा लाकर रोटी बनाई, इसलिए आधी रोटी हक़की है, आधी बेहक़की । आधीपर जुलूसवालेका हक़ है ।' राजाने सुनकर बुढ़ियाको सर झुकाया । सच्चा ज्ञानी एक बार एक पहुँचे पुरुष रानी- रासरमणिके कालीजीके मन्दिर में आये, जहाँ परमहंस रामकृष्ण रहा करते थे । एक दिन उनको कहीं से भोजन न मिला । यद्यपि उनको बड़ी भूख लग रही थी, उन्होंने किसीसे भो भोजनके लिए नहीं कहा। थोड़ी दूरपर एक कुत्ता जूठी रोटीके टुकड़े खा रहा था । वे चट दौड़कर उसके पास गये, उसको छाती से लगाकर बोले- 'भैया ! तुम मुझे बिना खिलाये क्यों खा रहे हो ?' फिर उसीके साथ खाने लगे। भोजनके अनन्तर वे फिर कालीजीके मन्दिर में चले आये, इतनी भक्ति से माताकी स्तुति करने लगे कि सारे मन्दिरमें सन्नाटा छा गया । जब वे जाने लगे तो रामकृष्ण परमहंसने अपने भतीजे हृदय मुकर्जी से कहा - ' बच्चा ! इस साधुके पीछे-पीछे जाओ और जो वह कहे, मुझसे आकर कहो ।' हृदय उसके पीछे-पीछे जाने लगा । साधुने घूमकर सन्त-विनोद ५३
SR No.009848
Book TitleSant Vinod
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarayan Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages153
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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