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________________ मैंने पैग़म्बरको ख्वाबमें देखा। वो बोले-'रबिया, तू मुझसे प्रेम करती है ?' मैने कहा- 'ओ खुदाके पैग़म्बर, आपसे कौन प्रेम नहीं करता ? लेकिन मैं ईश-प्रेमसे इतनी सरशार रहती हूँ कि मेरे दिल में किसी और चीज़के लिए मुहब्बत या नफ़रत बाक़ी नहीं रही।' -रविया धरती 'हे धरती ! तू बड़ी कंजूस है। सख्त महनत और एड़ी-चोटीका पसीना एक हो जानेके बाद ही तू हमे अन्न देती है। बिना महनत ही अगर तू हमें अन्न दे दिया करे, तो तेरा क्या घट जाय ?' धरती मुसकराई–'मेरी तो इसमें शान बढ़ेगी ही, लेकिन तेरी शान बिलकुल खत्म हो जायगी।' -रवीन्द्रनाथ टैगोर भक्त राँका-बाँका भक्त राँका कंगाल और बे-पढ़े होने पर भी तीव्र वैरागी थे । राँकाजी बड़े रंक थे, इसीसे शायद उनका नाम राँका पड़ गया था। उनकी स्त्रीका नाम बाँका था । वे बड़ी साध्वी, पतिव्रता और भक्तिपरायणा थीं। वैराग्यमे तो वे राँकाजीसे भी बढ़कर थीं। दोनों जंगलसे मूखी लकड़ियाँ बीन कर लाते और उन्हें बेच कर जो कुछ भी मिलता उससे भगवान्का भोग लगा कर प्रसाद पाते । राँकाजीको स्त्री-समेत दुःख भोगते देख कर सिद्ध भक्त नामदेवजीको बड़ा दुःख हुआ। उन्होंने भगवान्से प्रार्थना की कि राँकाजीको धन मिले । ४६ सन्त-विनोद
SR No.009848
Book TitleSant Vinod
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarayan Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages153
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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