SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 55
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मंत्री-पद १६२० में एक शख्सको मंत्री बननेके लिए कहा गया। उसने कहा कि मैं बहुत होशियार आदमी होनेका फ़ख तो नहीं करता, मगर मैं अपनेको मामूली समझदार और औसत दर्जेके लोगोंसे कुछ ज्यादा ही समझदार समझता हूँ, और मेरा ख्याल है कि ऐसी मेरी शुहरत भी है। क्या सरकार चाहती है कि मैं मंत्री-पद मजर कर लें और दुनिया में अपनेको सख्त बेवकूफ़ ज़ाहिर करू ? -'मेरी कहानी' ( जवाहरलाल नेहरू ) काम एक बार एक प्रकाण्ड विद्वान् महात्मा गाँधीसे मिलने गये। उन्होंने अपनी बड़ी आत्म-प्रशंसा की । गाँधीज़ी शान्तिपूर्वक सुनते रहे। आखिरमें वह सज्जन बोले 'मेरे लायक़ कुछ काम हो तो बताइए।' 'आपको वक़्त है ? 'हाँ, हाँ।' 'गेहूँ पीसनेमें हमारी मदद कर सकेंगे ?' ईश-प्रेम 'तू सर्वशक्तिमान ईश्वरसे प्रेम करती है ?' 'हाँ।' 'और क्या तू शैतानसे नफ़रत करती है ?' 'नहीं,' रबिया बोली, 'मेरे ईश-प्रेममें किसीसे घृणा करनेकी गुंजाइश ही नहीं है। सन्त-विनोद ४५
SR No.009848
Book TitleSant Vinod
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarayan Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages153
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy