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________________ प्रजा-सेवक बग़दादका एक खलीफ़ा राज-कार्य और प्रजाको सेवाके बदले में हर रोज़ शामको सिर्फ तीन दिरम ले लिया करता था। हालांकि और राजकर्मचारियोंका वेतन इससे कहीं ज्यादा था, मगर खलीफ़ा अपने लिए तीन दिरम ही काफ़ी समझते थे। एक बार उनकी बेगमने उनसे प्रार्थना की-'अगर आप मुझे तीन दिनकी तनख्वाह पेशगी दे दें तो मैं ईदपर बच्चोंके लिए नये कपड़े बना लें।' खलीफ़ा बोले-'अगर मैं तीन दिन जीता न रहा तो यह क़र्जा कौन चुकायेगा ? तुम खुदासे मेरी ज़िन्दगीके तीन दिनका पट्टा ला दो तो मैं खज़ानेसे तीन दिनकी तनख्वाह पेशगी उठा लूं।' धोखेबाज़ी नावेर नामक एक अरब सज्जनके पास एक बढ़िया घोड़ा था। दाहर नामके एक आदमीने उन्हें कई ऊँट देकर बदलेमें घोड़ा लेना चाहा, लेकिन नावेरको वह घोड़ा बहुत प्यारा था, इसलिए उन्होंने उसे देनेसे इनकार कर दिया। दाहरके मन घोड़ा बहुत चढ़ गया था, इसलिए उसने उसे हथियानेकी एक तरकीब सोची। वह रोगी फ़क़ीरका भेस बनाकर नावेरके रास्तेमें बैठ गया । जब नावेर अपने घोड़ेपर सवार होकर उधरसे गुजरे तो उन्हें फक़ीरकी हालतपर दया आई। अगले गाँव तकके लिए उसे घोड़ेपर चढ़ जाने दिया और खुद पैदल चलने लगे। घोड़ेपर सवार होते ही दाहरने चाबुक मार कर घोड़ेको दौड़ाते हुए कहा-'तुमने खुशीसे घोड़ा नहीं दिया तो मैंने चतुराईसे ले लिया !' नावेरने पुकार कर उससे कहा-'खुदाकी मर्जीसे तुमने मेरा घोड़ा इस तरह ले लिया है तो जाओ ले जाओ। इसकी खूब सार-संभाल सन्त-विनोद
SR No.009848
Book TitleSant Vinod
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarayan Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages153
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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