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________________ सुरक्षा एक सौदागरके पास बड़ी ही खूबसूरत दासी थी। एक बार उसे बाहर दौरेपर जाना था। पर यह नहीं तय कर पा रहा था कि दासीको किसके यहाँ छोड़ जाय । एक सज्जनने मशवरा दिया कि उसे सन्त यूसुफ़के पास छोड़ जाय । जब वह सन्त यूसुफ़के नगर पहुंचा तो उसने वहाँके निवासियोंसे उनके चरित्रके खिलाफ़ बहुत-सी बातें सुनीं। इसलिए वह निराश होकर अपने गाँव लौट आया। पर उसी सज्जनने सन्त यूसुफ़के निर्मल आचरणकी तारीफ़ करके उन्हे ही सर्वोत्तम व्यक्ति बतलाया। लाचार वह फिर वहीं पहँचा। लोगोंने सन्तकी निन्दा करके उसे फिर बरग़लाया। मगर वह दृढ़ता पूर्वक सन्तकी कुटियापर जा पहुंचा। वहाँ उनसे धर्मोपदेश सुनकर वह बड़ा प्रभावित हुआ। बोला-'आपका ज्ञान-वैराग्य विलक्षण है, मगर आप यह बोतल और प्याला क्यों रखते हैं ? इनसे लोग आपके शराबी होनेकी कल्पना करके बदनामी करते हैं।' __यूसूफ़ने कहा-'मेरे पास पानीके लिए कोई बरतन नहीं था, इसलिए यह बोतल और प्याला रख लिया है।' 'पर बदनामी तो इसीसे होती है !' 'इसीलिए तो मैंने यह बोतल और प्याला रख छोड़ा है। बदनामीकी वजहसे ही कोई मेरे पास नहीं आता। बेफ़िक्रीसे खुदाकी इबादतमें लगा रहता हूँ। अगर मैं मशहूर हो जाऊँ तो मेरे पास कोई सौदागर अपनो सुन्दर दासी न रख दे ? देखा, कितने फ़ायदेमें हूँ !' अक्रोध एक बार किसी गृहस्थके यहां एक स्याहपोश अतिथि आया। गृहस्थने नाखुशीसे पूछा-'तुमने ये काले कपड़े क्यों पहन हैं ?' रक्खे सन्त-विनोद
SR No.009848
Book TitleSant Vinod
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarayan Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages153
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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