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________________ ज्ञानी तब उसे एक दर्पण के सामने ले गया ! 'अब क्या दिखाई देता है ?" 'मैं अपने आपको देख रहा हूँ !" 'देखो', ज्ञानी बोला, ' खिड़की में भी काच है और दर्पण में भी काच है । लेकिन दर्पणके काचमें ज़रा चाँदी लगी हुई है और ज्योंही चांदी आई कि तुम औरोंको देखना बन्द कर देते हो और सिर्फ़ खुदको देखने लगते हो ।' महँगे भोग एक जंगली गधेने एक पालतू गधेको आराम से बढ़िया-बढ़िया खाने खाते देखा । वह उसके सौभाग्यपर उसे मुबारकबादियां देने लगा । लेकिन कुछ देर बाद उसने देखा कि उसकी पीठपर भारी बोझा लदा हुआ है और पीछेसे एक आदमी उसे एक डंडे से मारता हुआ हाँक रहा है । वह बोला, 1 अब मैं तुम्हें बधाइयाँ नहीं दे सकता, क्योंकि मैं देखता हूँ कि डटकर मालमलीदा उड़ानेकी तुम्हें भारी क़ीमत चुकानी पड़ती है ।' वाग्भट एक शिकारी शेरके आने-जानेके रास्तेकी जानकारी प्राप्त कर रहा था । उसने जंगलके एक निवासीसे पूछा - 'शेरकी माँद कहाँ है ?" 'माँद क्या, मैं तुम्हें शेर ही दिखाये देता हूँ — देखो वह खड़ा है तुम्हारे पीछे ।' सुनते ही शिकारी डरके मारे पीला पड़ गया और उसकी घिग्घी बॅध गई । कायर प्रलाप करते हैं, शूरवीर करके दिखाते हैं । १२६ सन्त-विनोद
SR No.009848
Book TitleSant Vinod
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarayan Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages153
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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