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________________ एकनाथ पैठणमें कुछ दुष्टोंने घोषणा की कि, 'जो एकनाथको क्रोध दिला देगा उसे दो सौ रुपये इनाम दिया जायेगा।' एक ब्राह्मण नौजवानने बीड़ा उठाया। वह एकनाथ महाराजके घर पहुँचा। उस समय एकनाथजी पूजा कर रहे थे। वह सीधा पूजाघरमें जाकर उनकी गोदमें जा बैठा । उसने सोचा कि इस तरह अशुद्ध होजानेपर एकनाथजीको क्रोध ज़रूर आयेगा। लेकिन उन्होंने हँस कर कहा---'भैया ! तुम्हे देख कर मुझे बड़ा आनन्द हुआ। मिलते तो बहुतसे लोग हैं, पर तुम्हारा प्रेम तो विलक्षण है।' वह देखता ही रह गया। समझ गया कि इन्हें क्रोध दिलाना बहुत मुश्किल है, मगर दो सौ रुपयेके लोभके मारे उसने अगले दिन फिर कोशिश की । भोजनके वक़्त जा पहुंचा। उसका आसन भी एकनाथजीके पास ही लगाया गया। भोजन परोसा गया। घी परोसनेके लिए एकनाथजीकी पत्नी गिरिजाबाई आई। उन्होंने ज्योंही झुककर ब्राह्मणको दालमें घी डालना चाहा, त्योंही वह लपक कर उनकी पीठपर चढ़ गया। एकनाथजीने कहा-'देखना, ब्राह्मण कहीं गिर न पड़े !' गिरिजाबाईने मुसकराते हुए कहा—'मुझे बेटा हरिको पीठपर लादे काम करनेका अभ्यास है । इस बच्चेको मैं कैसे गिरने दूंगी !' इससे तो ब्राह्मण युवककी सारी आशा टूट गई । वह एकनाथजीके चरणोंमें गिर कर क्षमा मांगने लगा। अन्त एथेन्समें सोलन नामक एक महान् दार्शनिक रहता था। एक बार वह लीडियाके राजा कारूँके यहाँ पहुँचा । कारूँ बहुत धनवान् था। उसे अपनी सम्पत्तिका बड़ा गर्व था। उसने सोलनको अपनी अतुल धनराशि ११० सन्त-विनोद
SR No.009848
Book TitleSant Vinod
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarayan Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages153
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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