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________________ राजसेवक चौतरफ़ दौड़ाये गये - आखिर एक लड़केको ले ही आये । उसके ग़रीब माँ-बापने काफ़ी धन लेकर अपने लख्ते-जिगरको वधके लिए दे दिया था । काजीने फ़तवा दे दिया कि 'बादशाहकी जान बचानेके लिए किसीकी जान लेना गुनाह नहीं है ।' लड़का बादशाह के सामने खड़ा था । हकीम अपनी तैयारी करके बैठ गये | जल्लादने तलवार उठाई । उस वक़्त लड़का आसमानकी तरफ़ देखकर हँस पड़ा । बादशाहने इशारेसे जल्लादको रोककर लड़केसे पूछा'लड़के ! तू हँसा क्यों ?' लड़का बोला- 'माँ-बाप जो कि सन्तानकी रक्षाके लिए प्राण देते हैं, उन्होंने मारे जानेके लिए बेच दिया; काज़ी जो न्यायमूर्ति कहलाता है, उसने एक बेकसूर की हत्याका फ़तवा दे दिया । बादशाह जो प्रजाका रक्षक है अपनी निर्दोष प्रजाके एक बालकको हत्या करवा रहा है । नितान्त असहाय अवस्थाको पहुँचकर मैं दीन-दुनिया के मालिककी ओर देखकर हँसा कि 'प्रभो ! ससारकी लोला तो देख ली, अब तेरी लीला देखनी है । जल्लादकी उठी तलवारका तू क्या करेगा !' 'मुझे माफ़ कर बेटा ! यह तलवार अब फिर नहीं उठेगी ।' बादशाहने क्षमा माँगी । प्रेम एथेन्स में दार्शनिक विद्वानोंकी एक 'महफ़िल जमी । चर्चाका विषय रक्खा गया 'प्रेम' | फ़ेडरसने कहा - 'देवोंका देव है । वहु सबसे बढ़कर है । सबसे ज़्यादा शक्तिशाली है । यह वह चीज़ है जो मामूली आदमीको वीर बना देती १०६ सन्त-विनोद
SR No.009848
Book TitleSant Vinod
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarayan Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages153
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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