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________________ सख्त धूप पड़ रही थी। महाराज भोजनकी थाली लेकर बाबाके पास जा रहे थे। रास्तेमें उन्होंने भूखसे व्याकुल एक कुत्ता देखा । महाराजने सोचा गुरुको भोजन करानेके बाद ही इसे खिलाना उचित है । वे आगे बढ़ रहे थे कि एकाएक विचार बदला। लेकिन कुत्ता ग़ायब हो गया था। 'तुम्हें इतनी कड़ी धूपमें आनेको क्या ज़रूरत थी, मैं तो रास्तेमे ही खड़ा था।' साई बाबाके इस कथनसे महाराजको कुत्तेकी याद आ गई; वे पश्चात्ताप करने लगे। x दूसरे दिन भोजनकी थाली लेकर महाराज ज्यों ही मन्दिरसे बाहर निकले कि दीवारके सहारे खड़ा हुआ एक शूद्र दिखा। वह गिड़गिड़ाने लगा, लेकिन महाराजको गुरुके पास पहले पहुंचना था। 'तुमने आज फिर फ़िजूल तकलीफ़ की । मैं तो मन्दिरके पास ही खड़ा था।' साईं बाबाने अपने प्रिय शिष्यको आँखें खोल दी। ___'कुत्ते और शूद्र-सबमें परमात्माका वास है। सबके प्रति सद्भाव रखकर यथोचित कर्तव्यका पालन परम श्रेयस्कर है। भगवान् घट-घटमें परिव्याप्त हैं । उन्हें पहिचानो,जानो,मानो।' साई बाबाने आशीर्वाद दिया। नर्तकी सौन्दर्यको मूर्ति वासवदत्ता मथुराकी सर्वश्रेष्ठ नर्तकी थी। एक रोज़ उसने खिड़की से बाहर देखा कि एक अत्यन्त सुन्दर युवा भिक्षु पीत चीवर ओढ़े, भिक्षापात्र लिये रास्तेसे जा रहा है । नर्तकी उसपर मोहित हो गई । जल्दीसे जीनेसे उतरकर दरवाजेपर आई। 'भन्ते !' नर्तकीने भिक्षुको पुकारा। सन्त-विनोद १०३
SR No.009848
Book TitleSant Vinod
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarayan Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages153
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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