SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 112
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हुए थे। उसी रात उस गाँवके किसी किसानके बैलकी चोरी हो गई। लोग चोर की तलाशमें निकले। ढूँढ़ते-ढूँढ़ते वे स्वामीजीके पास पहुँच गये। उन्होंने स्वामीजीको चोरोंका साथी समझकर खूब मारा । उनके महसे खूनतक बहने लगा। मगर स्वामीजी बिलकुल शान्त रहे। लोगोंने स्वामीजीको रातभर एक कोठरीमें बन्द रक्खा। सुबह होनेपर उन्हें थाने में ले गये। थानेदार स्वामीजीको अच्छी तरह जानता था और उनका भक्त था। स्वामीजीको आता देख वह भागा हुआ आया और उनके चरणोंमें गिरकर प्रणाम किया। यह देखकर गाँववाले बहुत घबराये । थानेदारने सिपाहियोंको हुक्म दिया-'मारो इन दुष्टोंको, स्वामीजीको कैसे पकड़कर लाये।' किसान लोग थर-थर काँपने लगे। जब सिपाही उन्हें पकड़ने बढ़े तो स्वामीजीने उन्हे रोका और थानेदारसे कहा--- 'देख ! जो तू मेरा प्रेमी है तो इन्हें बिलकुल कष्ट न दे और इन्हें मिठाई मँगाकर खिला।' थानेदारने बहुत-कुछ कहा, मगर स्वामीजी नहीं माने । उन्होंने थानेदारसे मिठाई मंगवाकर उन्हें खिलवाई और गाँवको सकुशल लौट जाने दिया। घटघटवासी उपासनी महाराज एक ब्राह्मण थे । श्मशानके पास किसी टूटे-फूटे मन्दिरमें रहते थे । साई बाबाके भक्त थे। अपने हाथसे भोजन बनाकर रोज़ मसजिदमें बाबाके लिए ले जाते थे। साई बाबाके भोजन करनेके बाद ही अन्न-जल ग्रहण करते थे। ___ एक दिन साई बाबाने उनसे पूछा---'तुम्हारे पास और लोग भी आते हैं उस मन्दिरमें ?' 'वहाँ कोई नहीं आता, बावा ।। 'अच्छा कभी-कभी मैं आता रहूँगा।' १०२ सन्त-विनोद
SR No.009848
Book TitleSant Vinod
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarayan Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages153
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy