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________________ अध्याय - 10 जीव परिणमन करता हुआ भी अन्य द्रव्यरूप नहीं होता - जह सिप्पिओ दु कम्मं कुव्वदि ण य सो दु तम्मओ होदि। तह जीवो वि य कम्मं कुव्वदि ण य तम्मओ होदि॥ (10-42-349) जह सिप्पिउ करणेहिं कुव्वदि ण य सो दु तम्मओ होदि। तह जीवो करणेहिं कुव्वदि ण य तम्मओ होदि॥ (10-43-350) जह सिप्पिउ करणाणि य गिण्हदि ण य सो दु तम्मओ होदि। तह जीवो करणाणि य गिण्हदि ण य तम्मओ होदि॥ (10-44-351) जह सिप्पिउ कम्मफलं भुंजदि ण य सो दु तम्मओ होदि। तह जीवो कम्मफलं भुंजदि ण य तम्मओ होदि॥ (10-45-352) जैसे स्वर्णकार आदि शिल्पी कुण्डल आदि कर्म करता है, परन्तु वह उनसे तन्मय नहीं होता। उसी प्रकार जीव भी ज्ञानावरणादि पुद्गल कर्म को करता है, किन्तु वह उनसे तन्मय नहीं होता। जैसे शिल्पी (स्वर्णकार आदि) हथौड़ा आदि उपकरणों से कुण्डल आदि बनाता है, किन्तु वह उनसे तन्मय नहीं होता। उसी प्रकार जीव भी मन-वचन-कायरूप करणों के द्वारा ज्ञानावरणादि कर्म करता है; किन्तु वह उनसे तन्मय नहीं होता। 165
SR No.009847
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorVijay K Jain
PublisherVikalp
Publication Year2012
Total Pages226
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Book_English
File Size2 MB
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