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________________ 'विमला' व्याख्योपेता ऐकारे बन्धनं मित्रेविरोषश्च भविष्यति । विप्रहश्च भवेन्नूनं मृत्युश्चैव न संशयः ॥ १२ ॥ ओकारे दृश्यते सिद्धिदुःखशोकविनाशनम् । सिध्यन्ति सर्वकार्याणि निर्भयं च न संशयः ॥ १३ ॥ ॠकार में व्याधि की उत्पत्ति, दुःख, सन्ताप हो और मित्रों के साथ विशेष निःसंदेह उत्पन्न हो ॥ ८ ॥ लृकार में सब कार्य की सिद्धि, मित्रों के समागम, शरीर में आरोग्य से राजकृत सन्मान हो ॥ ९ ॥ लकार में सर्वविषयक हानि, रोग की उत्पत्ति, सम्पत्ति का हरण, कार्यं की हानि 'नि:संदेह हो ॥ १० ॥ एकार में कार्य की सिद्धि, मित्रों के साथ समागम हो, स्थान का लाभ, शरीर में सुख और कल्याण हो ।। ११ ।। ऐकार में बन्धन, मित्रों के साथ विरोध, औरों से भी विग्रह, निःसंदेह मृत्यू वा मृत्यु समान कष्ट हो ।। १२ ।। १, ओ-कार में सिद्धि का दर्शन, दुःख, शोक का विनाश, सर्वकार्य सिद्ध हो और भय न हो, इसमें संशय नहीं ॥ १३ ॥ औ-कारे सर्वकार्याणि नैव सिध्यन्ति सर्वदा । मित्रः सह विरोधश्च शोकसंताप एव च ॥ १४ ॥ अं-कारे च महाहानिबंन्धनं च भविष्यति । महादु खं महाक्लेशो भयं चैव न संशयः ॥ १५ ॥ अ-कारे लभते सिद्धि प्रतिष्ठां चैव शोभनाम् । पुत्रलाभो महासौख्यं जायते नात्र संशयः ॥ १६ ॥ क- कारे राजसन्मानं सर्वार्थ प्रियदर्शनम् । कल्याणं च भवेन्नूनं सिद्धिश्चैव न संशयः ॥ १७ ॥ ख-कारे शोकसंतापो द्रव्यनाशस्तथैव च । शरीरे च ज्वरव्याधिर्जायते नात्र संशयः ॥ १८ ॥ ग-कारे चितितं कार्यं सिद्धिश्चैव प्रजायते । सुसोभाग्यमवाप्नोति मित्रः सह समागमः ॥ १९ ॥ औ - काराक्षर में सर्वकार्य की सिद्धि न हो, मित्रों के साथ विरोध और शोकसंताप हो ॥ १४ ॥ http://www.Apni Hindi.com
SR No.009846
Book TitleJyotish Prashna Falganana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayashankar Upadhyay
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1975
Total Pages53
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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