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________________ ४० आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद बताए है उसमें से मैं एक का भी अतिक्रमण नहीं करूँगा । शायद मेरी जान भी वैसा करने से चली जाएगी तो भी मैं आराधक बनूँगा । आगम में कहा है कि यह लोक या परलोक के खिलाफ कार्य हो उसके लिए आचरण न करना, न करवाना या आचरण करनेवाले को अच्छा न मानना, तो ऐसे गुणयुक्त तीर्थंकर का कहा भी वो नहीं करते तो मैं उनके वेस लूँट लूँ । शास्त्र में इस प्रकार प्ररूपणा की है कि जो कोई साधु या साध्वी केवल वचन से भी झूठा व्यवहार करे तो उसे गलती सुधारने के लिए वारणा, चोयणा, प्रतिचोयणा करनी चाहिए, उस प्रकार सारणा, वारणा, चोयणा परिचोयणा करने के बावजूद भी जो बुजुर्ग के वचन को ठुकराकर आलस कर रहा हो, कहने के मुताबिक व्यवहा न करता हो, तहत्ती करके आज्ञा को अपनाता न हो, 'इच्छं' का प्रयोगकरके वैसे अप्कार्य में से पीछे हठ न करता है उनका वेष ग्रहण करके नीकाल देना चाहिए । उस प्रकार आगम में बताए न्याय से हे गौतम ! उस आचार्य ने जितने में एक शिष्य का वेश (ग्रहण करके) झूटवा लिया । उतने में बाकी शिष्य हर एक दिशा में भाग गए। उसके बाद हे गौतम ! वो आचार्य जितने में धीरे-धीरे उनके पीछे जाने लगे, लेकिन जल्दी नहीं जाते थे । हे गौतम ! जल्दी चले तो खारी भूमि में से मधुरभूमी में संक्रमण करना पड़े । मधुर भूमि में से खारीभूमि में चलना पड़े । कालीभूमि में से पीलीभूमि में, पीली भूमि में से कालीभूमि मे, जल मे से स्थल में, स्थल मे से जल में, संक्रमण करके जाना पड़े उस कारण से विधि से पाँव की प्रमार्जना करके संक्रमण करना चाहिए । यदि पाँव की प्रमार्जना न की जाए तो बारह साल का प्रायश्चित् मिले । इस कारण से, हे गौतम ! वो आचार्य उतावले नहीं चल रहे थे । अब किसी समय सूत्र में बताई विधि से स्थान का संक्रमण करते थे तब हे गौतम ! उस आचार्य के पास कई दिन की क्षुधा से कमजोर बने शरीवाला, प्रकट दाढ़ा से भयानक यमराज समान भयभीत करते हुए प्रलयकाल की तरह घोर रूपवाला केसरीसिंह आ पहुँचा । महानुभाग गच्छाधिपति ने चिन्तवन किया कि यदि तेजी से उतावले होकर चलूँ तो इस शेर के पंजे में से बच शके, लेकिन नष्ट हो वो अच्छा मगर असंयम में काम करना अच्छा नहीं है । ऐसा चिन्तवन करके विधि से वापस आए शिष्य को जिसका वेष छूट लिया है वो वेश उसे देकर निष्पत्तिकर्म शरीरवाले वो गच्छाधिपति पदापोपगमन अनसन अपनाकर वहाँ खड़े रहे। वो शिष्य भी उसी के अनुसार रहा । अब उस समय अति विशुद्ध अंतःकरणवाले पंचमंगल का स्मरण करते शुभ अध्यवसायपन के योग से वो दोनों को हे गौतम ! सींह ने मार डाला इसलिए वो दोनों अंतकृत् केवली बन गए । आँठ तरह के मलकलंक रहित वो सिद्ध हुए । अब वो ४९९ साधु उस कर्म के दोष से जिस तरह के दुःख का अहेसास करते थे और फिर से अहसास करंगे और अनन्त संसार सागर में परिभ्रमण करेंगे वो सर्ववृत्तान्त काल से भी कहने के लिए कौन समर्थ है ? हे गौतम ! वो ४९९ या जिन्होंने गुणयुक्त महानुभाग गुरु की आज्ञा का उल्लंघन करके आराधना नहीं की वो अनन्त संसारी बने । [८१९] हे भगवंत ! क्या तीर्थंकर की आज्ञा का उल्लंघन न करे या आचार्य की आज्ञा का ? हे गौतम ! आचार्य चार तरह के बताए है । वो इस प्रकार नाम आचार्य, स्थापना आचार्य, द्रव्य आचार्य और भावार्चा । उसमें जो भावाचार्य है उन्हें तीर्थंकर समान मानना
SR No.009789
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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