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________________ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद वाणव्यंतर में, उसके बाद नीम की वनस्पति में, उसके बाद मानव की स्त्री में, उसके बाद छठ्ठी नारकी में, फिर कुष्ठि मानव, फिर वाण-व्यंतर, फिर महाकायवाला युथाधिपति हाथी, वहाँ मैथुन में अति आसक्ति होने से अनन्तकाय वनस्पति में वहाँ अनन्त काल जन्म-मरण के दुःख सहकर मानव बनेगा । फिर मानवपन में महानिमितिको फिर साँतवी में, फिर स्वयं-भूरमण समुद्र में बड़ा मत्स्य बनेगा । कईं जीव का मत्स्याहार करके मरकर साँतवी में जाएगा। उसके बाद आँखला, फिर मानव में, फिर पेड़ पर कोकिला फिर जलो, फिर महा मत्स्य, फिर तंदुल मत्स्य, फिर साँतवी में, फिर गधा, फिर कुत्ता, फिर कृमिजीव, फिर मेढ़क, फिर अग्निकाय में, फिर कुंथु, फिर मधुमक्खी, फिर चीड़िया, फिर उधइ, फिर वनस्पति में ऐसे अनन्तकाल करके मानव में स्त्रीरत्न, फिर छठ्ठी में, फिर ऊँट, फिर वेषामंकित, नाम के पट्टण में उपाध्याय के गृह के पास नीम की वनस्पति में, फिर मानव में छोटी कुब्जा स्त्री, फिर नामर्द, फिर दुःखी मानव, फिर भीख माँगनेवाले, फिर पृथ्वीकाय आदि काय में भवदशा और कायदशा हरएक में भुगतनेवाले, फिर मानव, फिर अज्ञान तप करनेवाले, फिर वाणव्यंतर, फिर पुरोहित, फिर साँतवी में, तंदुल मत्स्य, फिर साँतवी नारकी में, फिर बैल, फिर मानव में महासम्यग्दृष्टि अविरति चक्रवर्ती, फिर प्रथम नारकी में, फिर श्रीमंत शेठ, फिर श्रमण अणगारपन में, वहाँ से अनुत्तर देवलोक में, फिर चक्रवर्ती महासंघयणवाले होकर कामभोग से वैराग पाकर तीर्थंकर भगवंत कथित संपूर्ण संयम को साधकर उसका निर्वाण होगा । [६८०] और फिर जो भिक्षु या भिक्षुणी परपाखंड़ी की प्रशंसा करे या निह्नवो की प्रशंसा करे जिन्हे अनुकूल हो वैसे वचन बोले, निह्नवी के मंदिर - मकान में प्रवेश करे, जो निह्नवी के ग्रंथ, शास्त्र, पद या अक्षर को प्ररूपे, जो निन्हवो के प्ररूपेल कायक्लेश आदि तप करे, संयम करे । उसके ज्ञान का अभ्यास करे, विशेष तरह से पहचाने, श्रवण करे, पांडित्य करे, उसकी तरफदारी करके, विद्वान की पर्षदा में उसकी या उसके शास्त्र की प्रशंसा करे वो भी सुमति की तरह परमाधार्मिक असुर में उत्पन्न होता है । [६८१] हे भगवंत ! उस सुमति के जीव ने उस समय श्रमणपन अंगीकार किया तो भी इस तरह के नारक तिर्यंच मानव असुरादिवाली गति में अलग-अलग भव में इतने काल तक संसार भ्रमण क्यों करना पड़ा ? हे गौतम! जो आगम को बाधा पहुँचे उस तरह के लिंग वेश आदि ग्रहण किए जाए तो वो केवल दिखावा ही है और काफी लम्बे संसार का कारण समान वो माने जाते है । उसकी कितनी लम्बी हद है, वो बता नहीं शकते, उसी कारण से ( आगम- अनुसार) संयम दुष्कर माना गया है । तो दुसरी बात यह ध्यान में रखे कि श्रमणपन के लिए संयम स्थान में कुशील संसर्गी का त्याग करना है । यदि उसका त्याग न करे तो संयम ही टिकता नहीं । तो सुन्दर मतिवाले साधु को वही आचरण करना, उसकी ही प्रशंसा करना, उसकी ही प्रभावना - उन्नति करना । उसकी ही सलाह देना । वो ही आचरण करना कि जो भगवंत ने बताए आगम-शास्त्र में हो, इस प्रकार सूत्र का अतिक्रमण करके जिस तरह सुमति लम्बे संसार में भटका उसी तरह दुसरे भी सुन्दर, विदुर, सुदर्शन, शेखर, निलभद्र, सभोमेय, खग्गधारी, स्तेनश्रमण, दुर्दान्तदेव, रक्षित मुनि आदि हो चूके उसकी कितनी गिनती बताए ? इसलिए इस विषय का परमार्थ जानकर कुशील संसर्ग सर्वथा वर्जन करे । २४
SR No.009789
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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