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________________ २० आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद करके उसकी आलोचना प्रतिक्रमण नहीं किए, वो तुम्हे मालूम नहीं क्या ? इस साधु के शरीर पर फोल्ले हुए है, उस कारण से विस्मय पानेवाले मुखवाला नहीं देखता । अभी-अभी उसे लोच करने के लिए अपने हाथ से ही बिना दिए भस्म ग्रहण की, तुने भी प्रत्यक्ष वैसा करते हुए उन्हें देखा है । कल संघाटक को सूर्योदय होने से पहले ऐसा कहा कि उठो और चलो, हम विहार करे । सूर्योदय हो गया है | वो खुद तुने नहीं सुना ? इसमें जो बड़ा नवदिक्षित है वो बिना उपयोग के सो गया और बिजली अग्निकाय से स्पर्श किया उसे तुने देखा था । उसने कँबल ग्रहण न किया तब सुबह को हरे घास के पहनने के कपड़े के छोर से संघट्टा किया, तब बाहर खुले में पानी का परिभोग किया । बीज-वनस्पतिकाय पर पग चाँपकर चलता था। अविधि से खारी जमी पर चलकर मधुर जमी पर संक्रमण किया । और रास्ते में चलने के बाद साधु ने सौं कदम चलने के बाद इरियावहियं प्रतिक्रमना चाहिए । उस तरह चलना चाहिए, उस तरह चेष्टा करनी चाहिए, उस तरह बोलना चाहिए, उस तरह शयन करना चाहिए कि जिससे छ काय के जीव को सूक्ष्म या बादर, पर्याप्ता या अपर्याप्ता, आते-जाते सर्व जीव प्राण भूत या सत्व को संघट्ट परितापन किलामणा या उपद्रव न हो । इन साधुओ में बताए इन सर्व में से एक भी यहाँ नहीं दिखता । और फिर मुहपतिका पडिलेहण करते हुए उस साधु को मैंने प्रेरणा दी कि वायुकाय का संघट्टा हो वैसे फटफडाट आवाज करते हुए पडिलेहणा करते हो । पडिलेहण करने का कारण याद करवाया । जिसका इस तरह के उपयोगवाला जयणायुक्त संयम है । और वो तुम काफी पालन करते हो तो बिना संदेह की बात है कि उसमें तुम ऐसा उपयोग रखते हो ? इस समय तुमने मुजे रोका कि मौन रखो, साधुओ को हमें कुछ कहना न कल्पे । यह हकीकत क्या तूं भूल गया ? इसने सम्यक् स्थानक में से एक भी स्थानकं सम्यक् तरह से रक्षण नहीं किया, जिसमें इस तरह का प्रमाद हो उसे साधु किस तरह कह शकते है ? जिन्में इस तरह का निर्ध्वंसपन हो वो साधु नहीं है । हे भद्रमुख ! देख, श्वान समान निर्दय छ काय जीव का यह पुरुषन करनेवाला हो, तो उसके लिए मुझे क्यों अनुराग हो ? या तो श्वान भी अच्छा है कि जिसे अति सूक्ष्म भी नियम व्रत का भंग नहीं होता इस नियम का भंग करनेवाला होने से किसके साथ उसकी तुलना कर शके ? इसलिए हे वत्स ! सुमति ! इस तरह के कृत्रिम आचरण से साधु नहीं बन शकतें । उनको तीर्थंकर के वचन का स्मरण करनेवाला कौन वंदन करे ? दुसरी बात यह भी ध्यान में रखनी है कि उनके संसर्ग से हमें भी चरण-कमल में शिथिलता आ जाए कि जिससे बार-बार घोर भव की परम्परा में हमारा भ्रमण हो । तब सुमति ने कहा कि यदि वो कुशील हो या सुशील हो तो भी मैं तो उनके पास ही प्रवज्या अपनाऊँगा और फिर तुम कहते हो वही धर्म है लेकिन उसे करने के लिए आज कौन समर्थ है ? इसलिए मेरा हाथ छोड़ दो, मुजे उनके साथ जाना है वो दूर चले जाएगे तो फिर मिलने होना मुश्किल है । तब नागिल ने कहा कि हे भद्रमुख ! उनके साथ जाने में तुम्हारा कल्याण नहीं, मैं तुम्हें हित का वचन देता हूँ । यह हालात होने से जो ज्यादा गुणकारक हो उसका ही सेवन कर । मैं कही तुम्हें बलात्कार से नहीं पकड़ रहा । ___ अब बहोत समय कई उपाय करके निवारण करने के बावजुद भी न रूका और मंद भाग्यशाली उस सुमति ने हे गौतम ! प्रवज्या अंगीकार करके उसके बाद समय आने पर विहार
SR No.009789
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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