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________________ पिंडनियुक्ति-११७-२४० १९१ - चलते है । ऐसा करने से अपने देश की हद आ गई इसलिए वो निर्भय होकर किसी पेड़ के नीचे विश्राम करने बैठे और भोजन करते समय कुछ गाय को मार डाला और उनका माँस पकाने लगे । उस समय दुसरे मुसाफिर आए । चोरो ने उन्हे भी न्यौता देकर बिठाया । पकाया हुआ माँस खाने के लिए दिया । उसमें से कुछ ने 'गाय के माँस का भक्षण काफी पापकारक है । ऐसा समजकर माँस न खाया, कुछ परोसते थे, कुछ खाते थे, उतने में सिपाही आए और सबको धैरकर पकड़ लिया । जो रास्ते में इकट्ठे होते थे वो कहने लगे कि, 'हमने गाय की चोरी नहीं की' 'हम तो रास्ते में मिले थे, मुसाफिर ने कहा कि, हम तो इस ओर से आते है और यहाँ विसामा लेते है ।' सीपाही ने उनकी एक न सुनी और सबको मार डाला । चोरी न करने के बावजुद रास्ते में मिलने से चोर के साथ मर गए । इस दृष्टांत में चोरों को रास्ते में और भोजन के समय ही मुसाफिर मिले । उसमें भी जो भोजन करने में नहीं थे केवल परोसने में थे, उनको भी सिपाही ने पकड़ लिया और मार डाला । ऐसे यहाँ भी जो साधु दुसरे साधुओ को पापकर्मी आहार देते है, वो साधु नरक आदि गति के आशयभूत कर्म से बँधते है तो फिर जो आधाकर्मी आहार खाए उनको बँध हो उसके लिए क्या कहे ? प्रतिश्रवणा - आधाकर्मी लानेवाले साधु को गुरु दाक्षिण्यतादि 'लाम' कहे, आधाकर्मी आहार लेकर किसी साधु गुरु के पास आए और आधाकर्मी आहार आलोचना करे । वहाँ गुरु 'अच्छा हुआ तुम्हें यह मिला' ऐसा कहे, इस प्रकार सुन ले । लेकिन निषेध न करे तो प्रतिश्रवणा कहते है । उस पर राजपुत्र का दृष्टांत । गुणसमृद्ध नाम के नगर में महाबल राजा राज करे । उनकी शीला महारानी है । उनके पेट से एक पुत्र हुआ उसका नाम विजित समर रखा । उम्र होते ही कुमार को राज्य पाने की इच्छा हुई और मन में सोचने लगा कि मेरे पिता वृद्ध हुए है फिर भी मरे नहीं, इसलिए लम्बी आयुवाले लगते है । इसलिए मेरे सुभट की सहाय पाकर मेरे पिता को मार डालू और मैं राजा बन जाऊँ । इस प्रकार सोचकर गुप्तस्थान में अपने सुभट को बुलाकर अभिप्राय बताया । उसमें से कुछ ने कहा कि, कुमार ! तुम्हारी विचार उत्तम है । हम तुम्हारे काम में सहायता करेंगे । कुछ लोगों ने कहा कि, 'इस प्रकार करो । कुछ चूप रहे लेकिन कोई जवाब नहीं दिया । कुछ सुभट को कुमार की बात अच्छी न लगी इसलिए राजा के पास जाकर गुप्त में सभी बातें जाहिर कर दी । यह बात सुनते ही राजा कोपायमान हुआ और राजकुमार और सुभट को कैद किया । फिर जिन्होंने 'सहाय करेंगे' ऐसा कहा था । “ऐसे करो" ऐसा कहा था और जो चूप रहे थे उन सभी सुभटो को और राजकुमार को मार डाला । जिन्होंने राजा को खबर दी थी उन सुभटो की तनखा बढ़ाई, मान बढ़ाया और अच्छा तौहफा दिया । किसी साधु ने चार साधुओ को आधाकर्मी आहार के लिए न्यौता दिया । यह न्यौता सुनकर एक साधु ने वो आधाकर्मी आहार खाया । दुसरे ने ऐसा कहा कि, मैं नहीं खाऊँगा, तुम खाओ । तीसरा साधु कुछ न बोला । जब कि चौथे साधु ने कहा कि, साधु को आधाकर्मी आहार न कल्पे, इसलिए तुम वो आहार मत लेना । इसमें पहले तीन को 'प्रतिश्रवणा' दोष लगे । जब कि चौथे साधु ने निषेध करने से उसे 'प्रतिश्रवणा' दोष नहीं लगता । संवास - आधाकर्मी आहार खाते हो उनके साथ रहना । काफी रूक्ष वृत्ति से निर्वाह करनेवाले साधु को भी आधाकर्मी आहार खानेवाले के साथ का सहवास, आधाकर्मी आहार
SR No.009789
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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