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________________ १९० आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद ऊपर कहे अनुसार इक्कीस भेद में चार-चार भांगा नीचे के अनुसार होते है । प्रवचन से साधर्मिक, लिंग (वेश) से नहीं । लिंग से साधर्मिक प्रवचन से नहीं । प्रवचन से साधर्मिक और लिंग से साधर्मिक । प्रवचन से नहीं और लिंग से नहीं । इस प्रकार बाकी के बीस भेद में ४-४ भांगा समजना । प्रवचन से साधर्मिक लेकिन लिंग से नहीं । अविरति सम्यग्दृष्टि से लेकर श्रावक होकर दशवी प्रतिमा वहन करनेवाले श्रावक तक लिंग से साधर्मिक नहीं है । लिंग से साधर्मिक लेकिन प्रवचन से साधर्मिक नहीं - श्रावक की ग्यारहवी प्रतिमा वहन करनेवाले (मुंडन करवाया हो) श्रावक लिंग से साधर्मिक है । लेकिन प्रवचन से साधर्मिक नहीं है । उनके लिए बनाया गया आहार साधु को कल्पे । निह्नव संघ बाहर होने से प्रवचन से साधर्मिक नहीं लेकिन लिंग से साधर्मिक है । उनके लिए बनाया गया साधु को कल्पे । लेकिन यदि उसे निह्नव की प्रकार लोग पहचानते न हो तो ऐसे निह्नव के लिए बनाया गया भी साधु को न कल्पे । प्रवचन से साधर्मिक और लिंग से भी साधर्मिक - साधु या ग्यारहवी प्रतिमा वहन करनेवाले श्रावक। साधु के लिए किया गया न कल्पे, श्रावक के लिए किया गया कल्पे । प्रवचन, से साधर्मिक नहीं और लिंग से भी साधर्मिक नहीं गृहस्थ, प्रत्येक बुद्ध और तीर्थंकर, उनके लिए किया हुआ साधु को कल्पे । क्योंकि प्रत्येक बुद्ध और श्री तीर्थंकर लिंग और प्रवचन से अतीत है । इसी प्रकार प्रवचन और दर्शन की, प्रवचन और ज्ञान की, प्रवचन और चारित्र की, प्रवचन और अभिग्रह की, प्रवचन और भावना की, लिंग और दर्शन या ज्ञान या चारित्र या अभिग्रह या भावना की चतुर्भंगी, दर्शन के साथ ज्ञान, चारित्र, अभिग्रह और भावना की चतुर्भंगी, ज्ञान के साथ चारित्र या अभिग्रह या भावना की चतुर्भंगी और अन्त में चारित्र के साथ अभिग्रह और भावना की चतुर्भगी इस प्रकार दुसरी बीस चतुर्भगी के जाती है । इन हरएक भेद में साधु के लिए किया गया हो तो साधु को न कल्पे । तीर्थकर, प्रत्येकबुद्ध, निह्नवो और श्रावक के लिए किया गया हो तो साधु को कल्पे । किस प्रकार से उपयोग करने से आधाकर्म बँधता है ? प्रतिसेवना यानि आधाकर्मी दोषवाले आहार आदि खाना, प्रतिश्रवणा यानि आधाकर्मी आहार के न्योते का स्वीकार करना। संवास यानि आधाकर्मी आहार खाते हो उनके साथ रहना । अनुमोदन यानि आधाकर्मी आहार खाते हो उसकी प्रशंसा करना । इन चार प्रकार के व्यवहार से आधाकर्म दोष का कर्मबंध होता है । इसके लिए चोर, राजपुत्र, चोर की पल्ली और राजदुष्ट मानव का, ऐसे चार दृष्टांत है । प्रतिसेवना - दुसरों ने लाया हुआ आधाकर्मी आहार खाना | दुसरों ने लाया हुआ आधाकर्मी आहार खानेवाले साधु को, किसी साधु कहे कि, 'तुम संयत होकर आधाकर्मी आहार क्यों खाते है' इस प्रकार सुनकर वो जवाब देता है कि, इसमें मुझे कोई दोष नहीं है क्योंकि मैं आधाकर्मी आहार नहीं लाया हूँ, वो तो जो लाते है उनको दोष लगता है । जैसे अंगारे दुसरों से नीकलवाए तो खुद नहीं जलता, ऐसे आधाकर्मी लाए तो उसे दोष लगे । इसमें मुझे क्या ? इस प्रकार उल्टी मिसाल दे और दुसरों ने लाया हुआ आहार खुद खाए उसे प्रतिसेवना कहते है । दुसरों ने लाया हुआ आधाकर्मी आहार साधु खाए तो उसे खाने से आत्मा पापकर्म से बँधता है । वो समजने के लिए चोर का दृष्टांत किसी एक गाँव में काफी चोर लोग रहते थे । एक बार कुछ चोर पास के गाँव में जाकर कुछ गाय को उठाकर अपने गाँव की ओर आते थे, वहाँ रास्ते में दुसरे कुछ चोर और मुसाफिर मिले । सब साथ-साथ आगे
SR No.009789
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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