SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 105
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०४ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद राज्य देता हूँ । उसकी आमदनी में से तुम्हारी इच्छा के अनुसार अंधो को, आँधे अंगवाले को, जो चल नहीं शकते ऐसे अपंग को, काफी व्याधि वेदना से व्याप्त शरीरवाले को, सभी लोगो से पराभवित, दारिद्र, दुःख, शरीरसीबी से कलंकित लोगों को, जन्म से ही दरिद्र हो उनको, श्रमण को, श्रावक को, बेचैन को, रिश्तेदारो को, जिस किसी को जो इष्ट हो ऐसे भोजन, पानी, वस्त्र यावत् धन, धान्य, सुवर्ण, हिरण्य या समग्र सुख देनेवाले, सम्पूर्ण दया करके अभयदान दो । जिससे भवान्तर में भी सभी लोगो को अप्रियकारिणी सबको पराभव करने के स्थानभुत तुं न बने । और सुवास, पुष्पमाला, तंबोल, विलेपन, अंगराग आदि इच्छा के अनुसार भोग और उपभोग के साधन रहित बने, अपूर्ण मनोरथवाली, दुःखी जन्म देनेवाली, बीवी वंध्या रंड़ा आदि दुःखवाली न बने । तब हे गौतम ! उसने तहत्ति करके उस बात को अपनाइ । लेकिन नेत्र से हड़ हड़ करते अश्रुजल से जिसका कपोल का हिस्सा धुल रहा है । खोखरी आवाज में कहने लगी कि ज्यादा बोलना मैं नहीं जानती । यहाँ से आप जाकर जल्द काष्ठ की बड़ी चित्ता बनवाओ कि जिससे मेरे शरीर को उसमें डूबो दूँ । पापिणी ऐसी मुझे अब जीने का कोई प्रयोजन नहीं है । शायद कर्म परिणति को आधीन होकर महापापी स्त्री के चंचल स्वभाव के कारण से आपके इस असामान्य प्रसिद्ध नामवाले पूरे संसार में जिसकी कीर्ति और पवित्र यश भरा हुआ है ऐसे आपके कुल को शायद दाग लगानेवाली बनें । यह मेरे निमित्त से अपना सर्व कुल मलीन हो जाए उसके बाद उस राजाने चिन्तवन कि कि - वाकइ मैं अधन्य हूँ कि अपुत्रवाले ऐसे मुजे ऐसी रत्नसमान बेटी मिले । अहो ! इस बालिका का विवेक । अहो “उसकी बुद्धि ! अहो उसकी प्रज्ञा ! अहो उसका वैराग ! अहो उसके कुल को दाग लगानेवाला भीरूपन ! अहो सचमुच हर पल यह बालिका वंदनीय है, जिसके ऐसे महान गुण है तो जब तक वो मेरे घर में रहेगी तब तक मेरा महा कल्याण होगा । उसको देखने से, स्मरण करने से, उसके साथ बोलने से आत्मा निर्मल होगा, तो पुत्र रहित मुजको यह पुत्र पुत्रतुल्य है - ऐसा सोचकर राजाने कहा कि - हे पुत्री- हमारे कुल की रसम के अनुसार काष्ट की चिता में रंडापा नहीं होता । तो तू शील और श्रावक धर्म रूप चारित्र का पालन कर, दान दे, तुम्हारी ईच्छा के अनुसार पौषध उपवास आदि कर और खास करके जीवदया के काम कर ! यह राज्य भी तुम्हारा ही है । उसके बाद हे गौतम ! पिताके इस प्रकार कहने के बाद चिता में गिरना बन्द रखके मौन रही । फिर पिताने अंतःपुर के रक्षपाल सेवक को सौंप दिया । उस अनुसार समय बीते से किसी समय वो राजा मर गया । एक महाबुद्धिशाली महामंत्रीओने इकट्ठे होकर तय किया कि इस राजकुमारी का ही यहाँ राज्याभिषेक कर दे । फिर राज्याभिषेक किया । हे गौतम ! उसके बाद हररोज सभा मंडप में बैठती थी । __ अब किसी दिन वहाँ राजसभा में कईं बुद्धिजन, विद्यार्थी, भट्ट, तडिंग, मुसद्दी, चतुर, विचक्षण, मंत्रीजन, महंत आदि सेंकड़ो पुरुष से भरी पड़ी इस सभा मंडप के बीच राजसिंहासन पर बैठे कर्मपरिणति के आधीन राजकुमारीने राग सहित अभिलाषावाले नेत्र से उत्तम रूप लावण्य शोभा की संपत्तिवाली जीवादिक चीज के सुन्दर ज्ञानवाले एक उत्तम कुमार को देखा। कुमार उसके मनोगत भाव समज गया । सोचने लगा कि-मुझे देखकर बेचारी यह राजकुमारी घोर अंधकारपूर्ण और अनन्त दुःखदायक पाताल में पहुँच गई । वाकई मैं अधन्य
SR No.009789
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy