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________________ १०२ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद मुश्किल होता है । वाकई इतने अरसे तक मेरी आत्मा बनती रही । यह महान् आत्मा भार्या होने के बहाने से मेरे घर में उत्पन्न हुई । लेकिन निश्चय से उसके बारे में सोचा जाए तो सर्वज्ञ आचार्य की तरह इस संशयसमान अंधेरे को दूर करनेवाले, लोक को प्रकाशित करनेवाले, बड़े मार्ग को सम्यक् तरीके से बताने के लिए ही खुद प्रकट हुए है । अरे, महा अतिशयवाले अर्थ की साधना करनेवाली मेरी प्रिया के वचन है । अरे यज्ञदत्त ! विष्णुदत्त ! यज्ञदेव ! विश्वामित्र! सोम ! आदित्य आदि मेरे पुत्र, देव और असुर सहित पूरे जगत को यह तुम्हारी माता आदर और वंदन करने के लायक है । ____ अरे ! पुरन्दर आदि छात्र ! इस उपाध्याय की भार्याने तीन जगत को आनन्द देनेवाले, सारे पापकर्म को जलाकर भस्म करने के स्वभाववाली वाणी बताई उसे सोचो । गुरु की आराधना करने में अपूर्व स्वभाववाले तुम पर आज गुरु प्रसन्न हुए है । श्रेष्ठ आत्मबलवाले, यज्ञ करने-करवाने के लिए अध्ययन करना, करवाना, षट्कर्म करने के अनुराग से तुम पर गुरु प्रसन्न हुए है । तो अब तुम पाँच इन्द्रिय को जल्द से जीत लो । पापी ऐसे क्रोधानिक कषाय का त्याग करो । विष्ठा, अशुचि, मलमूत्र और आदि के कीचड़ युक्त गर्भावास से लेकर प्रसुति जन्म मरण आदि अवस्था कैसे प्राप्त होती है । वो तुम सब समजो । ऐसे काफी वैराग उत्पन्न करवानेवाले सुभाषित बताए ऐसे चौदह विद्या के पारगामी गोविंद ब्राह्मण को सुनकर काफी जन्म-जरा, मरण से भयभीत कइ सत्पुरुष धर्म की सोचने लगे । तब कुछ लोग ऐसा कहने लगे कि यह धर्म श्रेष्ठ है, प्रवर धर्म है । ऐसा दुसरे लोग भी कहने लगे । हे गौतम ! यावत् हर एक लोगो ने यह ब्राह्मणी जाति स्मरणवाली है ऐसे प्रमाणभूत माना । उसके बाद ब्राह्मणीने अहिंसा लक्षणवाले निःसंदेह क्षमा आदि दश तरह के श्रमणधर्म को आशय-दृष्टान्त कहने के पर्वक उन्हें परम श्रद्धा पेदा हो उस तरह से समजाया । उसके बाद उस ब्राह्मणी को यह सर्वज्ञ है ऐसा मानकर हस्तकमल की सुन्दर अंजली रचकर सम्मान से अच्छी तरह से प्रणाम करके हे गौतम ! उस ब्राह्मणी के साथ दीनतारहित मानसवाले कई नर-नारी वर्गने अल्पकाल सुख देनेवाले ऐसे परिवार, स्वजन, मित्र, बँधु, परिवार, घर, वैभव आदि का त्याग करके शाश्वत मोक्षसुख के अभिलाषी काफी निश्चित् दृढ़ मनवाले, श्रमणपन के सभी गुण को धारण करनेवाले, चौदह-पूर्वधर, चरमशरीरवाले, तद्भवमुक्तिगामी ऐसे गणधर स्थविर के पास प्रवज्या अंगीकार की । हे गौतम ! इस प्रकार वो काफी घोर, वीर, तप, संयम के अनुष्ठान के सेवन स्वाध्याय ध्यानादिक में प्रवृत्ति करते-करते सारे कर्म का क्षय करके उस ब्राह्मणी के साथ कर्मरज फेंककर गोविंद ब्राह्मण आदि कईं नर और नारी गण ने सिद्धि पाइ । वो सब महा यशस्वी बने इस प्रकार कहता हूँ। [१४९८] हे भगवंत ! उस ब्राह्मणीने ऐसा तो क्या किया कि जिससे इस प्रकार सुलभ बोधि पाकर सुबह में नाम ग्रहण करने के लायक बनी और फिर उसके उपदेश से कई भव्य जीव नर-नारी कि जो अनन्त संसार के घोर दुःख में सड़ रहे थे उन्हें सुन्दर धर्मदेश आदि के द्वारा शाश्वत सुख देकर उद्धार किया । हे गौतम ! उसने पूर्वभव में कई सुन्दर भावना सहित शल्य रहित होकर जन्म से लेकर अनन्त तक लगे हुए दोष की शुद्ध भाव सहित आलोयणा देकर यथोपदिष्ट प्रायश्चित् किया । फिर समाधि काल पाकर उसके प्रभाव से सौधर्म देवलोक में इन्द्र महाराज की अग्र महिषी महादेवी के रूप में उत्पन्न हुई ।
SR No.009789
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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