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________________ ९८ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद ( उद्देशक - ५ - में सूत्र ५६१ से ५६९ में धर्मशाला से आरम्भ करके महागृह तक वर्णन किया है । इस प्रकार यहाँ इस नौ सूत्र में वर्णन किया है । इसलिए नौ सूत्र का वर्णन उद्देशा - ५ अनुसार जान लेना - समज लेना । फर्क केवल इतना कि यहाँ धर्मशाला आदि स्थान में मलमूत्र परठवे ऐसा समजना | ) [९८०-९८१] जो साधु-साध्वी अन्यतीर्थिक या गृहस्थ को अशन-पान, खादिम, स्वादिम, वस्त्र - पात्र, कंबल, रजोहरण दे, दिलाए या देनेवाले की अनुमोदना करे । [९८२ - १००१] जो साधु-साध्वी पासत्था को अशन आदि आहार, वस्त्र, पात्र, कंबल, रजोहरण दे या उनके पास से ग्रहण करे, करवाए, अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । उसी प्रकार ओसन्न, कुशील, नीतिय, संसक्त को आहार, वस्त्र, पात्र, कम्बल, रजोहरण दे या उनके पास से ग्रहण करे तो प्रायश्चित् । [पासत्था से संसक्त तक के शब्द की समज, उद्देशक - १३ के सूत्र ८३० से ८४७ तक वर्णित की गई है । इस प्रकार जान - समज लेना ] [१००२] जो साधु-साध्वी किसी को हमेशा पहनने के, स्नान के, विवाह के, राजसभा के वस्त्र के अलावा कुछ माँगने से प्राप्त होनेवाला या निमंत्रण से पाया गया वस्त्र कहाँ से आया या किस तरह तैयार हुआ ये जाने सिवा उसके बारे में पूछे बिना, उसकी गवेषणा किए बिना उन दोनों तरह के वस्त्र ग्रहण करे -करवाए, अनुमोदना करे । [१००३ - १०५६ ] जो साधु-साध्वी विभूषा के निमित्त से यानि शोभा-खूबसूरती आदि बँढ़ाने की बुद्धि से अपने पाँव का एक या कईं बार प्रमार्जन करे -करवाए अनुमोदना करे । ( इस सूत्र से आरम्भ करके) एक गाँव से दुसरे गाँव जाते हुए अपने मस्तक का आच्छादन करे -करवाए, करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । [ उद्देशक - ३ - के सूत्र - १३३ से १८५ में यह सभी विवरण किया है । उसी के अनुसार यहाँ सूत्र १००४ से १०५६ के लिए समझ लेना फर्क केवल इतना कि पाँव धोना आदि की क्रिया यहाँ इस उद्देशक में शोभा- खूबसूरती बढ़ाने के आशय से हुई हो तब प्रायश्चित् आता है। [१०५७-१०५८] जो साधु-साध्वी विभूषा निमित्त से यानि शोभा या खूबसूरती बढ़ाने के आशय से वस्त्र, पात्र, कम्बल, रजोहरण या अन्य किसी उपकरण धारण करे, करवाए, अनुमोदना करे या धुए, धुलवाए, धोनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । यह उद्देशक - १५ में बताए अनुसार किसी भी दोष का खुद सेवन करे, दुसरों के पास सेवन करवाए या दोष सेवन करनेवाले की अनुमोदना करे तो उसे चातुर्मासिक परिहारस्थान उद्घातिक कि जिसका दुसरा नाम “लघु चौमासी" है वो प्रायश्चित् आता है । उद्देशक- १५- का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण उद्देशक- १६ "निसीह" सूत्र के इस उद्देशक में १०५९ से ११०८ यानि कि कुल ५० सूत्र है । इसमें बताए अनुसार किसी भी दोष का त्रिविधे सेवन करनेवाले को 'चाउम्मासियं' “परिहारट्ठाणं उग्घातियं" नाम का प्रायश्चित् आता है ।
SR No.009788
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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