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________________ १६ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद इस प्रकार उद्देशक-१२ में बताए अनुसार किसी भी कृत्य खुद करे, अन्य के पास करवाए या करनेवाले की अनुमोदना करे तो 'चातुर्मासिक परिहारस्थान प्रायश्चित् मतलब लघुचौमासी प्रायश्चित् आता है । (उद्देशक-१४) “निसीह" सूत्र के इस उद्देशक में ८६३ से ९०४ यानि कि कुल ४१ सूत्र है । उसमें कहे अनुसार किसी भी दोष का त्रिविध से सेवन करनेवाले को 'चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं उग्धातियं नाम का प्रायश्चित् आता है । . [८६३-८६६] जो साधु-साध्वी नीचे कहने के अनुसार पात्र खुद ग्रहण करे, दुसरों के पास ग्रहण करवाए या उस तरह से ग्रहण करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । खुद खरीद करे, करवाए या कोई खरीदकर लाए तो ले, उधार ले, दिलवाए, सामने से उधार दिया हुआ ग्रहण करे, पात्र एक दुजे से बदले, बदलाए, कोई बदला हुआ लाए तो रखे, छीनकर लाए, अनेक मालिक हो वैसा पात्र सबकी आज्ञा बिना ले, सामने से लाया गया पात्र स्वीकार करे । . [८६७-८६९] जो साधु-साध्वी अधिक पात्र हो तो सामान्य से या विशेष से गणि को पूछे बिना या निमंत्रित किए बिना अपनी ईच्छा अनुसार दुसरों को वितरण करे, हाथ, पाँव, कान, नाक, होठ जिसके छेदन न हुए हो ऐसे विकलांग ऐसे क्षुल्लक आदि या कमजोर को न दे, न दिलाए या न देनेवाले की अनुमोदना करे । [८७०-८७१] जो साधु-साध्वी खंड़ित, निर्बल, लम्बे अरसे तक न टिक शके ऐसे, न रखने के योग्य पात्र को धारण करे, अखंड़ित, दृढ़, टिकाऊ और रखने में योग्य पात्र को धारण न करे, न करवाए, न करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । [८७२-८७३] जो साधु-साध्वी शोभायमान या सुन्दर पात्र को अशोभनीय करे और अशोभन पात्र को शोभायमान या सुन्दर करे-करवाए या करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । [८७४-८८१] जो साधु-साध्वी मुझे नया पात्र नहीं मिलता ऐसा करके मिले हुए पात्र को या मेरा पात्र बदबूँवाला है ऐसा करके-सोचकर अचित्त ऐसे ठंड़े या गर्म पानी से एक या ज्यादा बार धोए, काफी दिन तक पानी में डूबोकर रखे, कल्क, लोध्र, चूर्ण, वर्ण आदि उद्धर्तन चूर्ण का लेप करे या काफी दिन तक लेपवाला करे, करवाए या अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्। [८८२-८९३] जो साधु-साध्वी सचित्त पृथ्वी पर पात्र को एक या बार बार तपाए या सूखाए, वहाँ से आरम्भ करके जो साधु-साध्वी, ठीक तरह से न बाँधे हुए, ठीक न किए हुए, अस्थिर या चलायमान ऐसे लकड़े के स्कन्ध, मंच, खटिया के आकार का मांची, मंडप, मजला, जीर्ण ऐसा छोटा या बड़ा मकान उस पर पात्रा तपाए या सूखाए, दुसरों को सूखाने के लिए कहे उस तरह से सूखानेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । इस ८८२ से ८९३ ये ११ सूत्र उद्देशक १३ के सूत्र ७८९ से ७९९ अनुसार है। इसलिए यह ११ सूत्र का विस्तार उद्देशक १३ के सूत्र अनुसार जान ले - समज लेना | फर्क इतना कि यहाँ उस जगह पर पात्र तपाए ऐसा समजना ।
SR No.009788
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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