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________________ निशीथ - १३/७९९ ९५ की जाल युक्त स्थान हो, अच्छी तरह से बँधा न हो, ठीक न रखा हो, अस्थिर हो या चलायमान हो ऐसे स्तम्भ, घर, ऊपर की देहली, ऊखलभूमि, स्नानपीठ, तृण या पत्थर की भींत, शिला, मीट्टीपिण्ड, मंच, लकडे आदि के बने स्कंध, मंच, मांडवी या माला, जीर्ण ऐसे छोटे या बड़े घर, इस सर्व स्थान पर बैठे, सोए खड़ा रहे या स्वाध्याय करे [८००-८०४] जो साधु-साध्वी अन्य तीर्थिक या गृहस्थ को शिल्पश् लोक, पासा, निमित्त या सामुदिक शास्त्र, काव्य-कला, भाटाइ - शीखलाए, सरोष, कठिन, दोनों तरह के वचन कहे, या अन्यतीर्थिक की आशातना करे, दुसरों के पास यह काम करवाए या वैसा करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । [८०५-८१७] जो साधु-साध्वी अन्यतीर्थिक या गृहस्थ के साथ नीचे बताए अनुसार कार्य करे, करवाए या अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । कौतुककर्म, भूतिकर्म, देवआह्वान पूर्वक प्रश्न पूछने, पुनः प्रश्न करना, शुभाशुभ फल समान उत्तर कहना, प्रति उत्तर कहना, अतित, वर्तमान या आगामी काल सम्बन्धी निमित्तज्योतिष कथन करना, लक्षण ज्योतिष या स्वप्न फल कहना, विद्या- मंत्र या तंत्र प्रयोग की विधि बताना, मार्ग भूले हुए, मार्ग न जाननेवाले, अन्य मार्ग पर जाते हो उसे मार्ग पर लाए, के रास्ते दिखाए, दोनों रास्ते दिखाए, पाषाण-रस या मिट्टी युक्त धातु दिखाए, निधि दिखाए तो प्रायश्चित् [८१८-८२५] जो साधु-साध्वी पात्र, दर्पण, तलवार, मणी, सरोवर आदि का पानी, प्रवाही गुड़, तैल, मधु, घी, दारू या चरबी में अपना मुँह देखे, दुसरों को देखने के लिए कहे, मुँह देखनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । [८३०-८४७] जो साधु-साध्वी पासत्था, अवसन्न, कुशील, नितीय, संसक्त, काथिक, प्रानिक, मामक, सांप्रसारिक यानि कि गृहस्थ को वंदन करे, प्रशंसा करे, करवाए या करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । पासत्था - ज्ञान, दर्शन, चारित्र के निकट रहके भी उद्यम न करे । कुशील- निंदित कर्म करे, अवसन्न सामाचारी उलट-सुलट करे, संसक्त, चारित्र विराधना दोषयुक्त, अहाछंद, स्वच्छंद, नितिय, नित्यपिंड़ खानेवाला, काथिक- अशन आदि के लिए या प्रशंसा के लिए कथा करे, प्राश्निक - सावद्य प्रश्न करे, मामग-वस्त्र- पात्र आदि मेरा-मेरा करे, सांप्रसारिक- गृहस्थ । [८४८-८६२] जो साधु-साध्वी नीचे बताने के अनुसार भोजन करे, की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । करवाए, करनेवाले धात्रि, दूति, निमित्त, आजीविका, वनीपक, चिकित्सा, क्रोध, मान, माया, लोभ, विद्या, मंत्र, योग, चूर्ण या अंर्तधान इसमें से किसी भी पिंड़ यानि भोजन खाए, खिलाए या खानेवाले की अनुमोदना करे । - गृहस्थ के बच्चे के साथ खेलकर गोचरी करे । दूती, गृहस्थ के संदेशा की आपले करे, निमित्त - शुभाशुभ कथन करे, आजीविक जीवन निर्वाह के लिए जाति - कुल तारीख करे, वनीपक दीनतापूर्वक याचना करे, चिकित्सा रोग आदि के लिए औषध दे, विद्या, स्त्री देवता अधिष्ठित साधना, मंत्र, पुरुष देवता अधिष्ठित साधना, योग- वशीकरण आदि प्रयोग, चूर्ण, कईं चीज मिश्रित चूर्ण प्रयोग, इसमें से किसी दोष का सेवन करके आहार लाए ।
SR No.009788
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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