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________________ ८६ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद करवाए या अनुमोदना करे तो वो साधु-साध्वी का “चातुर्मासिक परिहार स्थान अनुद्घातिक" नाम का प्रायश्चित् आता है जो “गुरु चौमासी" प्रायश्चित् नाम से जाना जाता है । (उद्देशक-८) “निसीह" सूत्र के इस उद्देशक में ५६१ से ५७९ इस प्रकार से कुल १९ सूत्र है। जिसमें से किसी भी दोष का त्रिविधे सेवन करनेवाले को “चाउमासियं परिहारट्ठाणं अनुग्घातियं" नाम का प्रायश्चित् आता है । जो ‘गुरु चौमासी" प्रायश्चित् भी कहा जाता है । [५६१-५६९] धर्मशाला, बगीचा, गृहस्थ के घर या तापस आश्रम में, उद्यान में, उद्यानगृह में, राजा के निर्गमन मार्ग में, निर्गमन मार्ग में रहे घर में, गाँव या शहर के किसी एक हिस्सा जिसे “अट्टालिका'' कहते है वहाँ, “अट्टालिका के किसी घर में, “चरिका" यानि कि किसी मार्ग विशेष, नगर द्वार में, नगर द्वार के अग्र हिस्से में. पानी में, पानी बहने के मार्ग में, पानी लाने के रास्ते में, पानी बहने के निकट प्रदेश के तट पर, जलाशय में, शून्य गृह, भग्नगृह, भग्नशाला या कोष्ठागार में, तृणशाला, तृणगृह, तुषाशाल, तृषगृह, भुसा-शाला या भुसागृह में, वाहनशाला, वाहनगृह, अश्वशाला या अश्वगृह में, हाटशाला-वखार, हाटगृहदुकान परियाग शाला, परियागगृह, लोहादिशाला, लोहादिघर, गोशाला, गमाण, महाशाला या महागृह (इसमें से किसी भी स्थान में) किसी अकेले साधु अकेली स्त्री के साथ (अकेले साध्वी अकेले पुरुष के साथ) विचरे, स्वाध्याय करे, अशन आदि आहार करे, मल-मूत्र परठवे यानि स्थंडिल भूमि जाए, निंदित-निष्ठुर-श्रमण को आचरने के योग्य नहीं ऐसा विकार-उत्पादक वार्तालाप करे, करवाए या करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । [५७०] जो साधु रात को या विकाल-संध्या के अवसर पर स्त्री समुदाय में या स्त्रीओ का संघट्ट हो रहा हो वहाँ या चारों दिशा में स्त्री हो तब अपरिमित (पाँच से ज्यादा सवाल के उतर दे या ज्यादा देर तक धर्मकथा करे) वक्त के लिए कथन (धर्मकथा आदि) करे, करवाए, करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । [५७१] जो साधु स्वगच्छ या परगच्छ सम्बन्धी साध्वी के साथ (साध्वी हो तो साधु के साथ) एक गाँव से दुसरे गाँव विचरते हुए, आगे जाने के बाद, पीछे चलते हुए जब उसका वियोग हो, तब उद्भ्रान्त मनवाले हो, फिक्र या शोक समुद्र में डूब जाए, ललाट पर हाथ रखकर बैठे, आर्तध्यान वाले हो और उस तरह से विहार करे या विहार में साथ चलते हुए स्वाध्याय करे, आहार करे, स्थंडिलभूमि जाए, निंदित-निष्ठुर श्रमण को न करने लायक योग्य ऐसी विकारोत्पादक कथा करे, करवाए या अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । [५७२-५७४] जो साधु स्व परिचित्त या अपरिचित्त श्रावक या अन्य मतावलम्बी के साथ वसति में (उपाश्रय में) आधी या पूरी रात संवास करे यानि रहे, यह यहाँ है ऐसा मानकर बाहर जाए या बाहर से आए, या उसे रहने की मना न करे (तब वो गृहस्थ रात्रि भोजन, सचित्त संघट्टन, आरम्भ-समारम्भ करे वैसी संभावना होने से) प्रायश्चित् । (उसी तरह से साध्वीजी श्राविका या अन्य गृहस्थ स्त्री के साथ निवास करे, करवाए, अनुमोदना करे, उसे आश्रित करके बाहर आए-जाए, उस स्त्री को वहाँ रहने की मना न करे, न करवाए या अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् ।
SR No.009788
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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