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________________ निशीथ-७/४८१ बनाए रखे, पहने या उपभोग करे, दुसरों के पास यह सब कराए या ऐसा करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । [४८२] जो साधु मैथुन की इच्छा से स्त्री की किसी इन्द्रिय, हृदयप्रदेश, उदर (नाभी युक्त) प्रदेश, स्तन का संचालन करे, करवाए या अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । [४८३-५३५] जो साधु-साध्वी मैथुन की इच्छा से आपस के पाँव को एक बार या बार-बार प्रमार्जन करे - ( इस सूत्र से आरम्भ करके) जो साधु-साध्वी एक गाँव से दुसरे गाँव जाते हुए मैथुन की इच्छा से एक दुजे के मस्तक को आव आच्छादन करे । ( यहाँ ४८३ से ५३५ ये ५३ सूत्र तीसरे उद्देशक में दिए सूत्र १३३ से १५४ के अनुसार है । इसलिए इस ५३ - सूत्र का विवरण उद्देशक - ३ अनुसार समज लेना । विशेष केवल इतना कि मैथुन की इच्छा से यह सर्व क्रिया " आपस में की गई " समजना । ) - ८५ [ ५३६ - ५४७ ] जो साधु मैथुन सेवन की इच्छा से किसी स्त्री को (साध्वी हो तो पुरुष को) सचित्त भूमि पर, जिसमें धुण नामके लकड़े को खानेवाले जीव विशेष का निवास हो, जीवाकुल पीठफलक-पट्टी हो, चींटी आदि जीवयुक्त स्थान, सचित्त बीजवाला स्थान, हरितकाययुक्त स्थान, सूक्ष्म हिमकणवाला स्थान, गर्दभ आकार कीटक का निवास हो, अनन्तकाय ऐसी फुग हो, गीली मिट्टी हो या जाली बनानेवाला खटमल मकड़ा हो यानि कि धुण आदि रहते हो ऐसे स्थान में, धर्मशाला, बगीचा, गृहस्थ के घर या तापस आश्रम में, अपनी गोदी में या बिस्तर में (संक्षेप में कहा जाए तो पृथ्वी - अप्-वनस्पति और त्रस काय की विराधना जहाँ मुमकीन है ऐसे उपर मुताबिक स्थान में) बिठाए या सुलाकर बगल बदले, अशन, पान, खादिम, स्वादिम रूप आहार करे, करवाए या यह क्रिया खुद करे, करवाए या अनुमोदना करे । [५४८- ५५० ] जो साधु मैथुन की इच्छा से स्त्री की (साध्वी पुरुष की) किसी तरह की चिकित्सा करे, अमनोज्ञ ऐसे पुद्गल (अशुचिपुद्गल) शरीर में से बाहर नीकाले मतलब शरीर शुद्धि करे, मनोज्ञ पुद्गल शरीर पर फेंके यानि शरीर गन्धदार करे या शोभा बढ़ाए ऐसा वो खुद करे, करवाए या अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । [५५१-५५३] जो साधु (साध्वी) मैथुन सेवन की इच्छा से किसी पशु या पंछी के पाँव, पंख, पूँछ या सिर पकड़कर उसे हिलाए, संचालन करे, गुप्तांग मे लकड़ा, वांस की शलाखा, ऊँगली या धातु की शलाका का प्रवेश करवाके, हिलाए, संचालन करे, पशु-पंछी में स्त्री ( या पुरुष) की कल्पना करके उसे आलिंगन करे, दृढ़ता से आलिंगन करे, सर्वत्र चुंबन करे, करवाए, करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । [५५४-५५९] जो साधु स्त्री के साथ (साध्वी- पुरुष के साथ) मैथुन सेवन की इच्छा से अशन, पान, खादिम, स्वादिम रूप चतुर्विध आहार, वस्त्र, पात्र, कंबल, रजोहरण, सूत्रार्थ, ( इन तीनो में से कोई भी) दे या ग्रहण करे, ( खुद करे, अन्य से करवाए या करनेवाले की अनुमोदना करे ) तो प्रायश्चित् । [५६०] जो साधु स्त्री के साथ (साध्वी पुरुष के साथ) मैथुन की इच्छा से किसी भी इन्द्रिय का आकार बनाए, तस्वीर बनाए या हाथ आदि से ऐसे काम की चेष्टा करे, करवाए या अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । इस प्रकार उद्देशक - ७ में कहे अनुसार किसी भी एक या ज्यादा दोष का सेवन करे,
SR No.009788
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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