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________________ निशीथ-४/३०२ को आवरण करे-ढंके (तब तक के ५३ सूत्र तीसरे उद्देशक में कहे अनुसार जानना ।) [३०३-३०४] जो साधु-साध्वी मल, मूत्र त्याग करने की भूमि का - अन्तिम पोरिसि से (संध्या समय पहले) पडिलेहण न करे, तीन भूमि यानि तीन मंडल तक या गिनती में तीन अलग-अलग भूमि का पडिलेहण न करे, न करवाए या न करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । [३०५-३०६] जो साधु-साध्वी एक हाथ से कम मात्रावाली लम्बी, चौडी अचित्त भूमि में (और शायद) अविधि से (प्रमार्जन या प्रतिलेखन किए बिना, जीवाकुल भूमि मे) मल-मूत्र का त्याग करे, करवाए या करनेवाले की अनुमोदना करे । [३०७-३०८] जो साधु-साध्वी मल-मूत्र का त्याग करने के बाद मलद्वार को साफ न करे, बांस या वैसी लकड़े की चीर, ऊँगली या धातु की शलाखा से मलद्वार साफ करे, करवाए या करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । . [३०९-३१२] जो साधु-साध्वी मल-मूत्र का त्याग करने के बाद मलद्वार की शुचि न करे, केवल मलद्वार की ही शुद्धि करे, (हाथ या अन्य जगह पर लगे मल मूत्र की शुद्धि न करे) काफी दूर जाकर शुद्धि करे नाँव के आकार जैसी एक पसली जिसे दो हाथ ईकडे करके, ऐसी तीन पसली से ज्यादा पानी से शुद्धि करे यह दोष खुद करे, करवाए या करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । [३१३] जो साधु-साध्वी अपरिहारिक हो यानि कि जिसे परिहार नाम का प्रायश्चित नहीं आया ऐसे शुद्ध आचारवाले हो ऐसे साधु-साध्वी, परिहार नाम का प्रायश्चित् कर रहे साधुसाध्वी को कहे कि हे आर्य ! (हे आर्या !) चलो हम दोनो साथ अशन-पान-खादिम-स्वादिम ग्रहण करने के लिए जाए । ग्रहण करके अपनी-अपनी जगह आहार पान करेंगे, यदि वो ऐसा बोले, बुलवाए या बुलानेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् ।। इस प्रकार उद्देशक-४-में बताए अनुसार किसी भी एक या ज्यादा दोष खुद सेवन करे, दुसरों के पास सेवन करवाए या उन दोष का सेवन करनेवाले की अनुमोदना करे तो उसे मासिक परिहार स्थान उद्घातिक नाम का प्रायश्चित् आता है जिसे 'लघुमासिक' प्रायश्चित् कहते है । उद्देशक-४-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण (उद्देशक-५) “निसीह" सूत्र के इस उद्देशक में ३१४ से ३९२ इस तरह से कुल ७९ सूत्र है । जिसमें से किसी भी दोप का त्रिविध से सेवन करनेवाले को 'मासियं परिहाट्ठाणं-उग्घातियं नामका प्रायश्चित् आता है । जिसे “लघुमासिक प्रायश्चित कहते है ।। [३१४-३२४] जो साधु-साध्वी पेड़ की जड़-स्कंध के आसपास की सचित्त भूमि पर खड़े रहकर, एकबार या बार बार आसपास देखे, अवलोकन करे, खड़े रहे, शरीर प्रमाण शय्या करें, बैठे, पासा बदले, असन, पान, खादिम, स्वादिम रूप आहार करे, मल मूत्र का त्याग करे, स्वाध्याय करे, सूत्र अर्थ तदुभय रूप सज्झाय का उद्देशके करे, बारबार सज्झाय पठन या समुद्देश करे, सज्झाय के लिए अनुज्ञाप्रदान करे, सूत्रार्थरूप स्वाध्याय वांचना दे, आचार्य आदि 1067
SR No.009788
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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