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________________ ८० आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद [२१७] जो साधु-साध्वी स्थापना कुल को (जहाँ साधु निमित्त से अन्न-पान आदि की स्थापना की जाती है उस कुल को) जाने-पूछे-पूर्वे गवेषणा किए बिना आहार ग्रहण करने की इच्छा से उस कुल में प्रवेश करे, या करवाए, या अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । [२१८] जो साधु-साध्वी के उपाश्रय में अविधि से प्रवेश करे, करवाए या करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् ।। २१९] जो साधु-साध्वी के आने के मार्ग में दंड़ी, लकड़ी, रजोहरण मुहपति या अन्य किसी भी उपकरण को रखे, रखवाए या रखनेवाले की अनुमोदना करे । [२२०-२२१] जो साधु-साध्वी नए या अविद्यमान क्लेश पेदा करे, खमाए हुए या उपशान्त हुए पुराने क्लेश को पुनः उद्दीकरण करे, करवाए या अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । [२२२] जो साधु-साध्वी मुँह फाड़कर यानि कि खुशखुशहाल हँसे, हँसाए या हँसनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । [२२३-२३२] जो साधु (या साध्वी) पासत्था (ज्ञान-दर्शन-चारित्र-तप की समीप रहे फिर भी उसकी आराधना न करे वो), ओसन्ना (अवसन्न या शिथिल)...कुशील, नीत्यक (नीच या अधम), संसक्त, (संबद्ध) इन पाँच में से किसी को भी अपने संघाडा के साधु (या साध्वी) देवें, दिलाए या देनेवाले की अनुमोदना करे, उसके संघाड़ा के साधु (या साध्वी) का स्वीकार करे, करवाए या अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । [२३३] जो साधु-साध्वी सचित्त पानी से भीगे हुए हाथ, मिट्टी का पात्र, कड़छी या किसी भी धातु का पात्र (मतलब सचित्त, पानी-अप्काय के संसर्गवाले) अशन-पान, खादिम, स्वादिन उन चार में से किसी भी तरह का आहार ग्रहण करे, करवाए या अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । [२३४] उपरोक्त सूत्र २३३ में बताने के अनुसार उस तरह कुल २१ भेद जानने चाहिए, वो इस प्रकार-स्निग्ध यानि कि कम मात्रा में भी सचित्त पानी का गीलापन हो, सचित्त ऐसी-रज, मिट्टी, तुषार, नमक, हरिताल, मन-शिल, पिली मिट्टी, गैरिक धातु, सफेद मिट्टी, हिंगलोक, अंजन, लोघ्रद्रव्य कुक्कुसद्रव्य, गोधूम आदि चूर्ण, कंद, मूल, शृंगबेर (अदरख) पुष्प, कोष्ठपुर (गन्धदार द्रव्य) संक्षेप में कहा जाए तो सचित्त अपकाय (पृथ्वीकाय या वनस्पतिकाय से संश्लिष्ट ऐसे हाथ या पात्र या कड़छी हो और उसके द्वारा किसी असन आदि चार में से किसी तरह का आहार दे, तब ग्रहण करे, करवाए या अनुमोदना तो प्रायश्चित् । [२३५-२४९] जो साधु-साध्वी ग्रामारक्षक को, देसारक्षक को, सीमारक्षक को, अरण्यारक्षक को, सर्वरक्षक को (इन पाँच या उसमें से किसी को) वश करे, खुशामत करे, आकर्षित करे, करवाए या वैसा करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । [२५०-३०२] जो किसी साधु-साध्वी आपस में यानि कि साधु-साधु के और साध्वीसाध्वी के बताए अनुसार कार्य करे, करवाए या करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् । (यह सर्व कार्य का विवरण उद्देशक-३ के सूत्र १३३ से १८५ में आता है) उसी ५३ दोष की बात यहाँ समजना) जैसे कि जो कोइ साधु-साधु या साध्वी-साध्वी आपस में एक दूसरे के पाँव को एक बार या बार-बार प्रमार्जन करे साफ करे, (वहाँ से आरम्भ करके) जो कोइ साधु-साधु या साध्वी-साध्वी एक गाँव से दुसरे गाँव विचरते हुए एक दुसरे के सिर
SR No.009788
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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