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________________ ६६ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद बोली में अप्राप्त उपमा द्वारा नहीं कह शकता । [२९८] उस तरह सिद्ध का सुख अनुपम है । उसकी कोई उपमा नहीं है तो भी कुछ विशेपण द्वारा उसकी समानता कहँगा । वो सुन [२९९-३००] कोइ पुरुष सबसे उत्कृष्ट भोजन करके भूख-प्यास से मुक्त हो जाए जैसे कि अमृत से तृप्त हुआ हो । उस तरह से समस्त काल में तृप्त, अतुल, शाश्वत और अव्याबाध निर्वाण सुख पाकर सिद्ध सुखी रहते है । [३०१] वो सिद्ध है । बुद्ध है । पारगत है, परम्परागत है । कर्म रूपी कवच से उन्मुक्त, अजर, अमर और असंग है । [३०२] जिन्होंने सभी दुःख दूर कर दिए है जाति, जन्म, जरा, मरण के बँन्धन से मुक्त, शाश्वत और अव्यावाध सुख का हमेशा अहेसास करते है । [३०३] समग्र देव की और उसके समग्र काल की जो ऋद्धि है उसका अनन्त गुना करे तो भी जिनेश्वर परमात्मा की ऋद्धि के अनन्तानन्त भाग के समान भी न हो । [३०४] सम्पूर्ण वैभव और ऋद्धि युक्त भवनपति, वाणव्यंतर, ज्योतिष्क और विमानवासी देव भी अरहंतो को वंदन करनेवाले होते है । [३०५] भवनपति, वाणव्यंतर, विमानवासी देव और ऋषि पालित अपनी-अपनी बुद्धि से जिनेश्वर परमात्मा की महिमा वर्णन करते है । [३०६] वीर और इन्द्र की स्तुति के कर्ता जिसमें खुद सभी इन्द्र की और जिनेन्द्र की स्तुति किर्तन किया वो । [३०७] सूरो, असुरो, गुरु और सिद्धो (मुजे) सिद्धि प्रदान करों । [३०८] इस तरह भवनपति, वाणव्यंतर, ज्योतिष्क और विमानवासी देव निकाय देव की स्तुति (कथन) समग्र रूप से समाप्त हुआ । |३२देवेन्द्रस्तव-प्रकिर्णक-९-हिन्दी अनुवाद पूर्ण |
SR No.009788
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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