SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 64
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ देवेन्द्रस्तव - २३३ आनुपूर्वी क्रम से वर्णन करूँगा । [२३४] सौधर्म और ईशान देव नीचे एक नरक तक, सनत्कुमार और महिन्द्र दुसरे नरक तक, ब्रह्म और लांतक तीसरे नरक तक शुक्र और सहस्रार चौथी नरक तक । [२३५] आनत से अच्युत तक के देवो को पाँचवे नरक तक । ६३ [२३६] अधस्तन और मध्यवर्ती ग्रैवेयक देवो को छठ्ठी नरक तक, उपरितन ग्रैवेयको को साँतवी नरक तक और पाँच अनुत्तरवासी सम्पूर्ण लोकनाड़ी को अवधि ज्ञान से देखते है। [२३७] आधा सागरोपम से कम आयुवाले देव अवधिज्ञान से तिर्छा संख्यात योजनउससे अधिक पच्चीस सागरोपमवाले भी जघन्य से संख्यात योजन देखते है । [२३८] उससे ज्यादा आयुवाले देव तिर्छा असंख्यात द्वीप समुद्र तक जानते है । ऊपर सभी अपने कल्प की ऊँचाई तक जानते है । [२३९] अबाह्य अर्थात् जन्म से अवधिज्ञानवाले नारकी देव, तीर्थंकर पूर्णता से देखते है और बाकी अवधिज्ञानी देश से देखते है । [२४०] मैंने संक्षेप में यह अवधिज्ञानी विषयक वर्णन किया । अब विमान का रंग, चौड़ाई और ऊँचाई बताऊँगा । [२४१] सौधर्म और ईशान कल्प में पृथ्वी की चौड़ाई २७०० योजन है और वो रत्न से चित्रित जैसी है | [२४२] सुन्दर मणी की वेदिका से युक्त, वैडुर्यमणि के स्तुप से युक्त, रत्नमय हार और अलंकार युक्त ऐसे कई प्रासाद इस विमान में होते है । [२४३] उसमें जो कृष्ण विमान है वो स्वाभाव से अंजन धातुसमान एवं मेघ और काक समान वर्णवाले होते है । जिसमें देवता बँसते है । [२४४] जो हरे रंग के विमान है वो स्वभाव से मेदक धातु समान और मोर की गरदन समान वर्णवाले है जिसमें देवता बँसते है । [२४५] जो दीपशिखा के रंगवाले विमान है वो जासुद पुष्प, सूर्य जैसे और हिंगुल धातु के समान वर्णवाले है उसमें देवता बँसते है । [२४६] उसमें जो कोरंटक धातु समान रंगवाले विमान है वो खीले हुए फूल की कर्णिका समान और हल्दी जैसे पीले रंग के है जिसमें देवता बँसते है । [२४७] यह देवता कभी न मुर्जानेवाले हारवाले, निर्मल देहवाले, गन्धदार श्वासोच्छ्वासवाले अव्यवस्थित वयवाले, स्वयं प्रकाशमान और अनिमिष आँखवाले होते है [२४८] वे सभी देवता ७२ कला में पंड़ित होते है । भव संक्रमण की प्रक्रिया में उसका प्रतिपात होता है ऐसा जानना । [२४९] शुभ कर्म के उदयवाले उन देव का शरीर स्वाभाविक तो आभुषण रहित होता है । लेकिन वो अपनी ईच्छा के मुताबिक विकुर्वित आभूषण धारण करते है । [२५०] सौधर्म ईशान के यह देव माहात्म्य, वर्ण, अवगाहना, परिमाण और आयु मर्यादा आदि दशा विशेष में हमेशा गोल सरसव समान एक रूप होता है । [२५१-२५२] इस कल्प में हरे, पीले, लाल, श्वेत और काले वर्णवाले पाँचसौ ऊँचे प्रासाद शोभायमान है । वहाँ सेंकड़ों मणि जड़ित कई तरह के आसन, शय्या, सुशोभित
SR No.009788
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy