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________________ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद [२१३] सभी विमान का अवलंबन रस्सी की तरह ऊपर से नीचे एक कोने से दुसरे तक समान होते है । ६२ [२१४] सभी वर्तुलाकार विमान प्राकार से घेरे हुए और चतुष्कोण विमान चारों दिशा में वेदिकायुक्त बताए है । [२१५] जहाँ वर्तुलाकार विमान होते है वहाँ त्रिपाई विमान की वेदिका होती है। बाकी के पाँच हिस्से में प्राकार होता है । [२१६] सभी वर्तुलाकार विमान एक द्वार वाले होते है । त्रिपाई विमान तीन और चतुष्कोण विमान में चार दरवाजे होते है । यह वर्णन कल्पपति के विमान का जानना । [२१७] भवनपति देव के ७ करोड ७२ लाख भवन होते है कथन कहा । । यह भवन का संक्षिप्त [२१८] तिर्छालोक में पेदा होनेवाले वाणव्यंतर देव के असंख्यात भवन होते है । उससे संख्यात गुने अधिक ज्योतिषीदेव के होते है । [२१९] विमानवासी देव अल्प है । उससे व्यंतर देव असंख्यात गुने है । उससे संख्यात गुने अधिक ज्योतीष्क देव है । [२२०] सौधर्म देवलोक में देवीओं के अलग विमान की गिनती छ लाख होती है । और ईशान कल्प में चार लाख होती है । [२२१] पाँच तरह के अनुत्तर देव गति, जाति और दृष्टि की अपेक्षा से श्रेष्ठ है और अनुपम विषय सुखवाले है । [२२२] जिस तरह सर्व श्रेष्ठ गन्ध, रूप और शब्द होते है उसी तरह सचित पुद्गल के भी सर्वश्रेष्ठ रस, स्पर्श और गन्ध इस देव के होते है । [२२३] जैसे भँवरा फैली हुई कली, फैली हुई कमल रज और श्रेष्ठ कुसुम की मकरंद का सुख से पान करता है । ( उस तरह यह देव पौद्गलिक विषय सेवन करते है ।) [२२४] हे सुंदरी ! यह देव श्रेष्ठ कमल जैसे श्वेतवर्णवाले एक ही उद्भव स्थान में निवास करनेवाले और वो उद्भव स्थान से विमुक्त होकर सुख का अहेसास करते है । [२२५-२२७] हे सुंदरी ! अनुत्तर विमानवासी देव को ३३ हजार साल पूरे होने पर आहार की ईच्छा होती है । मध्यवर्ती आयु धारण करनेवाले देव को १६५०० साल पूरे होने पर आहार ग्रहण होता है । जो देव १० हजार साल की आयु धारण करते है उनका आहार एक-एक दिन के अन्तर से होता है । [२२८-२३०] हे सुंदरी ! एक साल साड़े चार महिने अनुत्तरवासी देव के श्वासोच्छ्वास होते है । मध्यम आयु देव को आठ मास और साडे सात दिन के बाद श्वाच्छ्वोश्वास होते है । जघन्य आयु को धारण करनेवाले देव का श्वासोच्छ्वास सात स्तोक में पूर्ण होते है । [२३१] देव को जितने सागरोपम की जिनकी दशा उतने ही दिन साँसे होती है । [२३२] और उतने ही हजार साल पर उन्हें आहार की इच्छा होती है । इस तरह आहार और श्वासोच्छ्वास का मैंने वर्णन किया, हे सुंदरी ! अब जल्द उनके सूक्ष्म अन्तर को मैं क्रमशः बताऊँगा । [२३३] हे सुंदरी ! इस देव का जो विषय जितनी अवधि का होता है उसको मैं
SR No.009788
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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