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________________ २३४ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद की अभिलाषावाले को स्थिर न करना । साधर्मीक का वात्सल्य न करना या शक्ति होते हुए शासनप्रभावन भक्ति न करना । इस आठ स्थानक से दर्शनकुशील समजना । नोआगम से दर्शनकुशील के कोइ प्रकार के समजे, वो इस प्रकार-चक्षुकुशील, ध्राणकुशील, श्रवणकुशील, जिह्वाकुशील, शरीरकुशील, वे चक्षुकुशील तीन तरह के है । वो इस प्रकार-प्रशस्तचक्षुकुशील, प्रशस्ताप्रशस्त चक्षुकुशील और अप्रशस्त चक्षुकुशील । उसमें जो किसी प्रशस्त ऐसे ऋषभादिक तीर्थंकर भगवंत के बिंब के आगे दृष्टि स्थिर करके रहा हो वो प्रशस्त चक्षुकुशील और प्रशस्ताप्रशस्त चक्षुकुशील उसे कहते है कि हृदय और नेत्र से तीर्थंकर भगवंत की प्रतिमा के दर्शन करते-करते दुसरी किसी भी चीज की ओर नजर करे वो प्रशस्ताप्रशस्त कुशील कहलाता है । और फिर प्रशस्ताप्रशस्त द्रव्य जैसे कि कौआ, बग, ढंक, तित्तर, मोर आदि या मनोहर लावण्य युक्त खूबसूरत स्त्री को देखकर उसकी ओर नेत्र से दृष्टि करे वो भी प्रशस्ताप्रशस्त चक्षुकुशील कहलाता है । और फिर अप्रशस्त चक्षुकुशील-तैसठ तरह से अप्रशस्त सरागवाली चक्षु कहा है । हे भगवंत ! वो अप्रशस्त तैसठ चक्षुभेद कौन से है । हे गौतम ! वो इस प्रकार१. सभ्रकटाक्षा, २. तारा, ३. मंदा, ४. मदलसा, ५. वंका, ६. विवंका, ७. कुशीला, ८. अर्ध इक्षिता, ९. काण-इक्षिता, १०. भ्रामिता, ११. उद्भ्रामिता, १२. चलिता, १३. वलिता, १४. चलवलिता, १५. अर्धमिलिता, १६. मिलिमिला, १७. मानुष्य, १८. पशवा, १९. यक्षिका, २०. सरीसृपा, २१. अशान्ता, २२. अप्रशान्ता, २३. अस्थिरा, २४. बहुविकाशा, २५. सानुराग, २६. रागउदारणी, २७. रोगजा-रागजा, २८. आमय-उत्पादानी-मद उत्पादनी, २९. मदनी, ३०. मोहणी, ३१. व्यामोहनी, ३२. भय-उदीरणी, ३३. भयजननी, ३४. भयंकरी, ३५. हृदयभेदनी, ३६. संशय-अपहरणी, ३७. चित्त-चमत्कार उत्पादनी, ३८. निबद्धा, ३९. अनिबद्धा, ४०. गता, ४१. आगता, ४२. गता गता, ४३. गतागत-पत्यागता, ४४. निर्धारनी, ४५. अभिलषणी, ४६. अरतिकरा, ४७. रतिकरा, ४८. दीना, ४९. दयामणी, ५०. शुरा, ५१. धीरा, ५२. हणणी, ५३. मारणी, ५४. तापणी, ५५. संतापणी, ५६. क्रुद्धा-प्रक्रुद्धा, ५७, धीरा महाधीरा, ५८. चंड़ी, ५९. रुद्रा-सुरुद्रा, ६०. हाहाभूतशरणा, ६१. रूक्षा, ६२. स्निग्धा, ६३. रूक्ष स्निग्धा (इस प्रकार कुशील दृष्टि यहाँ बताई है, उस नाम के अनुसार अर्थ-व्याख्या समज लेना ।) स्त्रीयों के चरण अँगूठे, उसका अग्र हिस्सा, नाखून, हाथ जो अच्छी तरह से आलेखेल हो, लाल रंग या अलता से गात्र और नाखून रंगे हो, मणि की किरणे इकट्ठे होने की कारण से जैसे मेघधनुष न हो वैसे नाखून को, कछुए की तरह उन्नत चरण को अच्छी तरह से गोल रखे गए गूढ़ जानुओ, जंघाओ, विशाल कटी तट के स्थान को, जघन, नितम्ब, नाभि, स्तन, गुप्तस्थान के पास की जगह, कंठ, भुजालष्टि, अधर, होठ, दंतपंक्ति, कान, नासिका, नेत्रयुगल, भ्रमर, मुख, ललाट, मस्तक, केश, सेथी, टेढ़ी केशलट, पीठ, तिलक, कुंडल, गाल, अंजन श्याम वर्णवाले तमाल के पत्र समान केश कलाप, कंदोरा, नुपुर, बाहु रक्षक मणि रत्न जड़ित कंगन, कंकण, मुद्रिका आदि मनोहर और झिलमिल रहे आभूषण, रेशमी पतले वस्त्र, सुतराउ
SR No.009788
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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