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________________ २३० आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद तूं पार पानेवाला बन । बड़ी दीक्षा में, गणीपद की अनुज्ञा में साँत बार इस विद्या का जप करना और निन्थारग पारगा होह... ऐसा कहना । अंतिम साधना अनसन अंगीकार करे तब मंत्रीत करके वासक्षेप किया जाए तो आत्मा आराधक बनता है । इस विद्या के प्रभाव से विघ्न के समूह उपशान्त उत्पन्न होता है । शुरवीर पुरुष संग्राम में प्रवेश करे तो किसी से पराभव नहीं होता । कल्प की समाप्ति में मंगल और क्षेम करनेवाला होता है । [५९८] और फिर साधु-साध्वी श्रावक-श्राविका समग्र नजदीकी साधर्मिक भाई, चार तरह के श्रमण संघ के विघ्न उपशान्त होते है और धर्मकार्य में सफलता पाते है । और फिर उस महानुभाव को ऐसा कहना कि वाकईं तुम धन्य हो, पुण्यवंत हो, ऐसा बोलते-बोलते वासक्षेप मंत्र करके ग्रहण करना चाहिए । उसके बाद जगद्गुरु जिनेन्द्र की आगे के स्थान में गंधयुक्त, न मुर्झाई हुई श्वेत माला ग्रहण करके गुरु महाराज अपने हस्त से दोनों खंभे पर आरोपण करते हुए निःसंदेह रूप से इस प्रकार कहना -कि- अरे महानुभाव ! जन्मान्तर में उपार्जित किए महापुण्य समूहवाले ! तुने तेरा पाया हुआ, अच्छी तरह से उपार्जित करनेवाला मानव जन्म सफल किया, हे देवानुप्रिय ! तुम्हारे नरकगति और तिर्यंचगति के द्वार बन्द हो गए । अब तुजे अपयश अपकिर्ती हल्के गौत्र कर्म का बँध नहीं होगा । भवान्तर में जाएगा वहां तुम्हे पंच नमस्कार अति दुर्लभ नहीं होगा । भावि जन्मान्तर में पंच नमस्कार के प्रभाव से जहाँ-जहाँ उत्पन्न होगा वहाँ वहाँ उत्तम जाति, उत्तम कुल, उत्तम पुरुष, सेहत, संपत्ति प्राप्त होगी । यह चीजे यकीनन तुम्हें मिलेगी ही । और फिर पंच नमस्कार के प्रभाव से तुम्हें दासपन, दारिद्र, बदनसीबी, हीनकुल में जन्म, विकलेन्द्रियपन नहीं मिलेगा । ज्यादा क्या कहना ? हे गौतम ! इस बताई हुए विधि से जो कोई पंच-नमस्कार आदि नित्य अनुष्ठान और अठ्ठारह हजार शीलांग के लिए रमणता करनेवाला हो, शायद वो सराग से संयम क्रिया का सेवन करे उस कारण से निर्वाण न पाए तो भी ग्रैवेयक अनुत्तर आदि उत्तम देवलोक में दीर्घकाल आनन्द पाकर यहाँ मानवलोक में उत्तमकुल में जन्म पाकर उत्कृष्ट सुन्दर लावण्य युक्त सर्वांग सुन्दर देह पाकर सर्व कला में पारंगत होकर लोगों के मन को आनन्द देनेवाला होता है, सुरेन्द्र समान ऋद्धि प्राप्त करके एकान्त दया और अनुकंपा करने में तत्पर, कामभोग से व्यथित यथार्थ धर्माचरण करके कर्मरज को छोडकर सिद्धि पाता है । [५९९] हे भगवंत ! क्या जिस तरह पंच मंगल उपधान तप करके विधिवत् ग्रहण किया उसी तरह सामायिक आदि समग्र श्रुतज्ञान पढ़ना चाहिए ? हे गौतम! हा, उसी प्रकार विनय और उपधान तप करने लायक विधि से अध्ययन करना चाहिए । खास करके वो श्रुतज्ञान पढ़ाते वक्त अभिलाषावाले को सर्व कोशीश से आँठ तरह के कालादिक आचार का रक्षण करना चाहिए । वरना श्रुतज्ञान की महा अशातना होती है । दूसरी बात यह भी ध्यान में रहे कि बारह अंग के श्रुतज्ञान के लिए प्रथम और अंतिम प्रहर पढ़ने के लिए और पढ़ाने के लिए हंमेशा कोशीश करनी और पंचमंगल नवकार पढ़ने के लिए - आँठ पहोर बताए है । दुसरा यह भी ध्यान रखो कि पंच मंगल नवकार सामायिक
SR No.009788
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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