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________________ २०४ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद बार अनन्त संसार में घुमे तो भी वोधि पाने के लिए अधिकारी नहीं बन शकता । यह दुसरा भेद मानो । [३९७] इन छ पुरुप में सर्वोत्तम पुरुष उसे मानो कि जो छद्मस्व वीतरागपन पाया हो जिसे उत्तमोत्तम पुरुष वताए है वो उन्हें जानना कि जो ऋद्धि रहित इत्यादि से लेकर उपशामक और क्षपक मुनिवर हो । और फिर उत्तम उन्हें मानो कि जो अप्रमत्त मुनिवर हो इस प्रकार इन पुरुष की निरुपणा करना । [३९८] और फिर जो मिथ्यादृष्टि होकर उग्र ब्रह्मचर्य धारण करनेवाला हो हिंसाआरम्भ परिग्रह का त्याग करनेवाला वो मिथ्यादृष्टि ही है । सम्यकदृष्टि नहीं, उनको जीवादिक नौ तत्व के सद्भाव का ज्ञान नहीं होता वो उत्तम चीज मोक्ष का अभिनन्दन या प्रशंसा नहीं करते, वो ब्रह्मचर्य हिंसा आदि पाप का परिहार करके उस धर्म के बदले में आगे के भव के लिए तप ब्रह्मचर्य के बदले में नियाणा करके देवांगना पाए उतने ब्रह्मचर्य से भ्रष्ट बने संसार के पौद्गलिक सुख पाने की इच्छा से नियाणा करे । [३९९] विमध्यम पुरुप उसे कहते है कि जो उस तरह का अध्यवसाय अंगीकार करके श्रावक के व्रत अपनाए हो । [४००] और जो अधम और अधमाधम वो जिस मुताबिक एकान्त में स्त्रीयों के लिए कहा उस मुताबिक कर्म स्थिति उपार्जन करे । केवल पुरुष के लिए इतना विशेष समजो कि पुरुष को स्त्री के राग उत्पन्न करवानेवाले स्तन-मुख ऊपर के हिस्से के अवयव योनि आदि अंग पर अधिकतर राग उत्पन्न होता है । इस प्रकार परुष के छतरीके बताए । [४०१] हे गौतम ! कुछ स्त्री भव्य और दृढ़ सम्यक्त्ववाली होती है उनकी उत्तमता सोचे तो सवोत्तम ऐसे पुरुष की कक्षा में आ शकते है । लेकिन सभी स्त्री वैसी नहीं होती। [४०२] हे गौतम ! उसी तरह जिस स्त्री को तीन काल पुरुष संयोग की प्राप्ति नहीं हुई । पुरुष संयोग संप्राप्ति स्वाधीन होने के बावजुद भी तेरहवे-चौदहवे, पंद्रहवे समय में भी पुरुष के साथ मिलाप न हुआ | यानि संभोग कार्य आचरण न किया । तो जिस तरह कई काष्ठ लकड़े, ईंधण से भरे किसी गाँव नगर या अरण्य में अग्नि फैल उठा और उस वक्त प्रचंड़ पवन फेंका गया तो अग्नि विशेष प्रदीप्त हुआ । जला-जलाकर लम्बे अरसे के बाद वो अग्नि अपने-आप बुझकर शान्त हो जाए । उस प्रकार हे गौतम ! स्त्री का कामाग्नि प्रदीप्त होकर वृद्धि पाते है । लेकिन चौथे वक्त शान्त हो उस मुताबिक इक्कीसवे बाईसवे यावत् सत्ताईसवे समय में शान्त बने, जिस तरह दीए की शिखा अदृश्य दिखे लेकिन फिर तेल डालने से अगर अपने आप अगर उस तरह के चूर्ण के योग से वापस प्रकट होकर चलायमन होकर जलने लगे । उसी तरह स्त्री भी पुरुप के दर्शन से या पुरुष के साथ बातचीत करने से उसके आकर्पण से, मद से, कंदर्प से उसके कामाग्नि से सत्तेज होती है । फिर से भी जाग्रत होती है । [४०३] हे गौतम ! ऐसे वक्त में यदि वो स्त्री भय से, लज्जा से, कुल के कलंक के दोप से, धर्म की श्रद्धा से, काम का दर्द सह ले और असभ्य आचरण सेवन न करे वो स्त्री धन्य है । पुन्यवंती है, वंदनीय है । पूज्य है । दर्शनीय है, सर्व लक्षणवाली है, सर्व कल्याण
SR No.009788
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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