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________________ महानिशीथ-२/३/३१८ १९५ निशानी करने के लिए कान-नाक छेदन, निलांछन, ड्राम, सहना, धुसरी में जुड़कर साथ चलना, परोणी, चाबूक, अंकुश आदि से मार खाने से लगातार भयानक दुःख जैसा रात को ऐसा दिन में ऐसे सर्वकाल जीवन पर्यन्त दुःख सहना यह और उसके जैसे दुसरे कईं दुःखसमूह को चीरकाल पर्यन्त महसूस करके दुःख से पीड़ित आर्तध्यान करते हुए महा मुश्किल से प्राण का त्याग करता है । [३१९-३२३] और फिर वैसे किसी शुभ अध्यवसाय विशेष से किसी भी तरह मनुष्यत्व पाए लेकिन अभी पूर्व किए गए शल्य के दोष से मनुष्य में आने के बाद भी जन्म से ही दरिद्र के वहाँ उत्पन्न होता है । वहाँ व्याधि, खस, खुजली आदि रोग से घेरे हुए रहता है और सब लोग उसे न देखने में कल्याण मानते है । यहाँ लोगों की लक्ष्मी हड़प लेने की दृढ़ मनोभावना से दिल में जलता रहता है । जन्म सफल किए बिना वापस मर जाए अध्यवसाय विशेष को आश्रित करके वैसे पृथ्वी आदि स्थावरकाय में घुमे या तो दो, तीन, चार, पाँच इन्द्रियवाले भव में उस तरह का अति रौद्र घोर भयानक महादुःख भुगतते हुए चारों गति समान संसार अटवी में दुःसह दर्द सहते हुए (हे गौतम !) वो जीव सर्व योनि में भव और काय दशा खपाते हुए घुमता रहता है । [३२४] जो आगे एक बार पूर्व भव में शल्य या पाप दोष का सेवन किया था, उस कारण से चारो गति में भ्रमण करते हुए और हर एक भव में जन्मधारण, अनेक व्याधि, दर्द, रोग, शोक, दरिद्रता, क्लेश, झूठे कलंक पाना, गर्भावास आदि के दुःख समान अग्नि में जलनेवाला बेचारा “क्या नहीं पा शकता" वो बताता है ।...निर्वाण गमन उचित आनन्द महोत्सव स्वरूप सामर्थ्ययोग, मोक्ष दिलानेवाला अठ्ठारह हजार शीलांग स्थ और सर्व पापराशि एवं आँठ तरह के कर्म के विनाश के लिए समर्थ ऐसे अहिंसा के लक्षणवाला वीतराग सर्वज्ञकथित धर्म और बोधि-सम्यक्त्व नहीं पा शकता । ३२५-३२७] परिणाम विशेष को आश्रित करके कोइ आत्मा लाख पुद्गल परिवर्तन के लम्बे अरसे के बाद महा मुसीबत से बोधि प्राप्त करे । ऐसा अति दुर्लभ सर्व दुःख का क्षय करनेवाला बोधि रत्न प्राप्त करके जो कोई प्रमाद करे वो फिर से इस तरह के पहले बताए उस योनि में उसी क्रम में उसी मार्ग में जाते है और वैसे ही दुःख पाते है । [३२८-३२९] उस प्रकर सर्व पुद्गल के सर्व पर्याय सर्व वणान्तर सर्व गंधरूप से, रसरूप से, स्पर्शपन से, संस्थानपन से अपने शरीररूप में, परीणाम पाए, भवस्थिति और कायस्थिति के सर्वभाव लोक के लिए परिणामान्तर पाए, उतने पुद्गल परावर्तन काल तक बोधि पाए या न पाए ।। [३३०-३३१] इस प्रकार व्रत-नियम का भंग करे, व्रत-नियम तोड़नेवाले की उपेक्षा करे, उसे स्थिर न करे, शील-खंडन करे, अगर शील खंडन करनेवाले की उपेक्षा करे, वो संयम विराधना करे या संयम विराधककी उपेक्षा करे, उन्मार्ग का प्रवर्तन करे और ऐसा करते हुए न रोके, उत्सूत्र का आचरण करे और सामर्थ्य होते हुए भी उसे न रोके या उपेक्षा करे, वो सब आगे वर्णित क्रम से चारों गतिरूप संसार मैं परिभ्रमण करता है ।। [३३२-३३३] सामनेवाला आदमी क्रोधित बने या तोषायमान बने, झहर खाकर
SR No.009788
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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