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________________ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद [२६७-२६९] कुंथुआ के पाँव के स्पर्श से उत्पन्न हुई खुजली से मुक्त होने की अभिलाषावाला बेचैन मानव फिर जो अवस्था पाता है वो कहते है । लावण्य चला गया है ऐसा अतिदीन, शोकमग्न, उद्वेगवाला, शून्यमनवाला, त्रस्त, मूढ़, दुःख से परेशान, धीमे, लम्बे निःसासे, छोडनेवाला, चित्त से आकुल, अविश्रांत दुःख की कारण से अशुभ तिर्यंच और नाकी के उचित कर्म बाँधकर भव परम्परा में भ्रमण करेगा । १९२ [२७०] इस प्रकार कर्म को क्षयोपशम से कुंथुआ के निमित्त से उत्पन्न हुए दुःख को किसी तरह से आत्मा को मजबूत बनाकर यदि पलभर समभाव पाए और कुंथु जीव कोन खुजलाए वो महक्लेश के पार हुआ समजो । [२७१-२७५] शरण रहित उस जीव को क्लेश न देकर सुखी किया, इसलिए अति हर्ष पाए । और स्वस्थ चित्तवाला होकर सोचे-माने कि यदि एक जीव को अभयदान दिया और फिर सोचने लगे कि अब मैं निवृत्ति-शांति प्राप्त हुआ । खुजलाने से उत्पन्न होनेवाला पाप कर्म दुःख को भी मैंने नष्ट किया । खुजलाने से और उस जीव की विराधना होने से मैं अपनेआप नहीं जान शकता कि मैं रौद्र ध्यान में जाता या आर्त ध्यान में जाता ? रौद्र और आर्त ध्यान से उस दुःख का वर्ग गुणांक करने से अनन्तानन्त दुःख तक पहुँच जाए । एक वक्त के भी आंतरा रहित सतत जैसा दिन को ऐसा रात को लगातार दुःख भुगतते हुए मुजे बीच में थोड़ी शान्ति भी न मिल शके, नरक और तिर्यंच गति में ऐसा दुःख सागरोपम के और असंख्यातकाल तक भुगतना पड़े और उस वक्त हृदय रसरूप होकर दुःखरूप अग्नि से जैसे पीगल जाता हो ऐसा अहेसास करे । [२७६] कुंथुआ को छूकर उपार्जन किए दुःख भुगतने के वक्त मन मे ऐसा सोचे कि यह दुःख न हो तो सुन्दर, लेकिन उस वक्त चिंतवन करना चाहिए कि इस कुंथु के स्पर्श से उत्पन्न होनेवाली खुजली का दुःख मुजे कौन-से हिसाब में गिने जाए ? [२७७] कुंथुआ के स्पर्श का या खुजली का दुःख यहाँ केवल उपलक्षण से बताया। संसार में सबको दुःख तो प्रत्यक्ष ही है । उसका अहेसास होने के बावजूद भी कुछ प्राणी नहीं जानते इसलिए कहता हूँ । [२७८-२७९] दुसरे लेकिन महाघोर दुःख सर्व संसारी जीव को होते है । हे गौतम! वो कितने दुःख यहाँ बँयान करना ? जन्म-जन्मान्तर में केवल वाचा से इतना ही बोले कि, "हण लो-मारो" उतने वचन मात्र का जो यहाँ फल और पापकर्म का उदय होता है वो कहता हूँ । [२८०-२८३] जहाँ-जहाँ वो उत्पन्न होता है वहाँ-वहाँ कईं भव-वन में हमेशा मरनेवाला, पीटनेवाला, कूटनेवाला हंमेशा भ्रमण करता है । जो किसी प्राणी के या कीड़े तितली आदि जीव के अंग उपांग आँख, कान, नासिका, कमर, हड्डिया आदि शरीर के अवयव को तोड दे, अगर तुडवा दे या ऐसा करनेवाले को अच्छा माने तो वो किए कर्म के उदय से घाणीचक्की या वैसे यंत्र में जैसे तल पीले जाए वैसे वो भी चक या वैसे यंत्र में पीले जाएगा । इस तरह एक, दो, तीन, बीस, तीस या सो, हजार, लाख नहीं लेकिन संख्याता भव तक दुःख की परम्परा प्राप्त करेगा । [ २८४-२८६ ] प्रमाद या अज्ञान से अगर इर्ष्या दोष से जो कोई असत्य वचन
SR No.009788
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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