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________________ १७२ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद मिश्र हो तो एकासणा, पिहित दोष में अनन्तर पिहित हो तो आयंबिल, परंपर पिहित हो तो एकासणु, साहरित दोप हो तो निवि से उपवास पर्यन्त । दायार- याचक दोष आयंबिल-उपवास तप, संसक्त दोष में आयंबिल, ओयतंतिय आदि में आयंबिल, उन्मिश्र निवि से उपवास पर्यन्त तप, अपरिणत दोष दो तरह से पृथ्वी आदि पाँच स्थावर में आयंबिल लेकिन यदि अनन्तकाय वनस्पति हो तो उपवास, छर्दित दोष लगे तो आयंबिल तप प्रायश्चित् जानना । संयोजना दोप लगे तो आयंबिल, इंगाल दोष में उपवास, धूम्र, अकारण भोजनप्रमाण अतिरिक्त दोष में आयंबिल । [४४] सहसात् और अनाभोग से जो-जो कारण से प्रतिक्रमण - प्रायश्चित् बताया है उन कारण का आभोग यानि जानते हुए सेवन करे तो भी बार-बार या अति मात्रा में करे तो सबमें नीव तप प्रायश्चित् जानना । [४५] दौड़ना, पार करना, शीघ्र गति में जाना, क्रिड़ा करना, इन्द्रजाल बनाकर तैरना, ऊँची आवाज में बोलना, गीत गाना, जोरो से छींकना, मोर- तोते की तरह आवाज करना, सर्व में उपवास तप प्रायश्चित् । [४६-४७] तीन तरह की उपधि बताई है जघन्य मध्यम और उत्कृष्ट वो गिर जाए और फिर से मिले, पडिलेहण करना बाकी रहे तो जघन्य मुहपत्ति, पात्र केसरिका, गुच्छा, पात्र स्थापनक उन चार के लिए निवि तप, मध्यम पड़ल, पात्रबँध, चोलपट्टक, मात्रक, रजोहरण रजस्त्राण उन छ के लिए पुरिमड्ढ़ तप और उत्कृष्ट - पात्र और तीन वस्त्र उन चार के लिए कासा तप प्रायश्चित् विसर जाए तो आयंबिल तप, कोई ले जाए या खो जाए या धोए तो जघन्य उपधि - एकासणु मध्यम के लिए आयंबिल, उत्कृष्ट उपधिके लिए उपवास । आचार्यादिक को निवेदन किए बिना ले आचार्यादि के झरिये बिना दिए ले भुगते - दुसरों को दे तो भी जघन्य उपधि के लिए एकासणा यावत् उत्कृष्ट के लिए उपवास तप प्रायश्चित् । [४८] मुहपति फाड़ दे तो नीवि, रजोहरण फाड़ दे तो उपवास, नाश या विनाश करे तो मुहपत्ति के लिए उपवास और रजोहरण के लिए छठ्ठ तप प्रायश्चित् आता है । [४९] भोजन में काल और क्षेत्र का अतिक्रमण करे तो निवि, वो अतिक्रमित भोजन भुगते तो उपवास, अविधि से परठवे तो पुरिमड्ड तप प्रायश्चित् । [५०-५१] भोजन-पानी न ढँके, मल-मूत्र - काल भूमि का पड़िलेहण न करे तो निवि नवकारसी-पोरिसि आदि पच्चक्खाण न करे या लेकर तोड दे तो पुरिमड्ड यह आम तोर पर कहा, तप - प्रतिमा अभिग्रह न ले, लेकर तोड़ दे तो भी पुरिमड्ड पक्खि हो तो आयंबिल या उपवास तप, शक्ति मुताबिक तप न करे तो क्षुल्लक को नीवि, स्थविर को पुरिम, भिक्षु को एकासणा, उपाध्याय को आयंबिल, आचार्य को उपवास । चोमासी हो तो क्षुल्लक से आचार्य को क्रमशः पुरिमड्ड से छठ्ठ, संवत्सरी को क्रमशः एकासणा से अट्टम तप प्रायश्चित् मानना चाहिए । [५२] निद्रा या प्रमाद से कायोत्सर्ग पालन न करे, गुरु के पहले पारे काऊस्सग्ग भंग करे, जल्दबाझी में करे, उसी तरह ही वंदन करे, तो निवि-पुरिमड्ड एकासणा तप और सारे दोष के लिए आयंबिल तप प्रायश्चित् । [५३] एक काऊस्सग्ग आवश्यक को न करे तो पुरिमड्ढ़ - एकासणा-आयंबिल, सभी आवश्यक न करे तो उपवास, पूर्वे अप्रेक्षित भूमि में रात को स्थंडिल वोसिरावे, मल त्याग करे
SR No.009788
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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