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________________ दशाश्रुतस्कन्ध-९/५४ १५९ (दसा-९-मोहनीय स्थान ___ आठ कर्मो में मोहनीय कर्म प्रबल है । उसकी स्थिति भी सबसे लम्बी है । इसके संपूर्ण क्षय के साथ ही क्रम से शेष कर्मप्रकृति का क्षय होता है । इस मोहनीय कर्म के बन्ध के ३० स्थान (कारण) यहां प्ररूपित है (५४] उस काल उस समय में चम्पानगरी थी । पूर्णभद्र चैत्य था । कोणिक राजा तथा धारिणी राणी थे । श्रमण भगवान महावीर वहां पधारे । पर्षदा नीकली । भगवंतने देशना दी । धर्म श्रवण करके पर्षदा वापिस लौटी । बहोत साधु-साध्वी को भगवंत ने कहाआर्यो ! मोहनीय स्थान ३० है । जो स्त्री या पुरुष इस स्थानो का बारबार सेवन करते है, वे महामोहनीय कर्म का बन्ध करते है । [५५] जो कोई त्रस प्राणी को जल में डूबाकर मार डालते है, वे महामोहनीय कर्म का बन्ध करते है । [५६] प्राणी के मुख-नाक आदि श्वास लेने के द्वारो को हाथ से अवरुद्ध करके... [५७] अग्नि की धूम्र से कीसी गृह में घीरकर मारे तो महामोहनीय कर्म बन्ध करे । [५८-६०] जो कोई प्राणी को मस्तक पर शस्त्रप्रहार से भेदन करे...अशुभ परिणाम से गीला चर्म बांधकर मारे...छलकपट से कीसी प्राणी को भाले या डंडे से मार कर हंसता है, तो महामोहनीय कर्मबन्ध होता है । [६१-६३] जो गूढ आचारण से अपने मायाचार को छूपाए, असत्य बोले, सूत्रो के यथार्थ को छूपाए...निर्दोष व्यक्ति पर मिथ्या आक्षेप करे या अपने दुष्कर्मो का दुसरे पर आरोपण करे...सभा मध्य में जान बुझकर मिश्र भाषा बोले, कलहशील हो-वह महामोहनीय कर्म बांधता है । [६४-६५] जो अनायक मंत्री-राजा को राज्य से बाहर भेजकर राज्यलक्ष्मी का उपभोग करे, राणी का शीलखंडन करे, विरोध कर्ता सामंतो की भोग्यवस्तु का विनाश करे तो वह महामोहनीय कर्म बांधता है । [६६-६८] जो बालब्रह्मचारी न होते हुए अपने को बालब्रह्मचारी कहे, स्त्री आदि के भोगो में आसक्त रहे...वह गायो के बीच गद्धे की तरह बेसुरा बकवास करता है । आत्मा का अहित करनेवाला वह मूर्ख मायामृषावाद और स्त्री आसक्ति से महामोहनीय कर्म बांधता है । [६९-७१] जो जिसके आश्रय से आजीविका करता है, जिसकी सेवा से समृद्ध हुआ है, वह उसीके धन में आसक्त होकर, उसका ही सर्वस्व हरण कर ले...अभावग्रस्त ऐसा कोई जिस समर्थ व्यक्ति या ग्रामवासी के आश्रय से सर्व साधनसम्पन्न हो जाए, फिर इर्ष्या या संक्लिष्टचित्त होकर आश्रयदाता के लाभ में यदी अन्तरायभूत होता है, तो वह महामोहनीय कर्म बांधता है । [२] जिस तरह सापण अपने बच्चे को खा जाती है, उसी तरह कोई स्त्री अपने पति को, मंत्री, राजा को, सेना सेनापति को या शिष्य शिक्षक को मार डाले तो वे महामोहनीय कर्म बांधते है । [७३-७४] जो राष्ट्र नायक को, नेता को, लोकप्रिय श्रेष्ठी को या समुद्र में द्वीप सदृश
SR No.009788
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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