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________________ दशाश्रुतस्कन्ध-६/३६ प्राप्त करके अन्त में मोक्षगामी होता है, वो क्रियावादी है । 1 [३७] ( उपासक प्रतिमा- १) क्रियावादी मानव सर्व ( श्रावक श्रमण) धर्म रूचिवाला होता है । लेकिन सम्यक् तरह से कईं शीलव्रत, गुणव्रत, प्राणातिपात आदि विरमण, पञ्चकखाण, पौषधोपवास का धारक नहीं होता (लेकिन) सम्यक् श्रद्धावाला होता है, यह प्रथम दर्शन - उपाशक प्रतिमा जानना । ( जो उत्कृष्ट से एक मास की होती है 1) [३८] अब दुसरी उपाशक प्रतिमा कहते है वो सर्व धर्म रुचिवाला होता है । ( शुद्ध सम्यक्त्व के अलावा यति (श्रमण) के दश धर्म की दृढ़ श्रद्धा वाला होता है) नियम से कईं शीलव्रत, गुणव्रत, प्राणातिपात आदि विरमण, पञ्चकखाण और पौषधोपवास का सम्यक् परिपालन करता है । लेकिन सामायिक और देसावगासिक का सम्यक् प्रतिपालन नहीं करता । वो दुसरी उपासक प्रतिमा (जो व्रतप्रतिमा कहलाती है) । इस प्रतिमा का उत्कृष्ट कालो महिने है । १५३ [३९] अब तीसरी उपाशक प्रतिमा कहते है वो सर्व धर्म रुचिवाला और पूर्वोक्त दोनों प्रतिमा का सम्यक् परिपालक होता है । वो नियम से कईं शीलव्रत, गुणव्रत, प्राणातिपातआदि विरमण, पञ्चकखाण, पौषधोपवास का सम्यक् तरह से प्रतिपालन करता है । सामायिक और देसावकासिक व्रत का भी सम्यक् अनुपालक होता है । लेकिन वो चौदश, आठम, अमावास और पूनम उन तिथि में प्रतिपूर्ण पौषधोपवास का सम्यक् परिपालन नहीं कर शकता । वो तीसरी (सामायिक) उपासक प्रतिमा (इस सामायिक प्रतिमा के पालन का उत्कृष्ट काल तीन महिने है 1) [४०] अब चौथी उपासक प्रतिमा कहते है । वो सर्व धर्म रूचिवाला ( यावत् यह पहले कही गई तीनों प्रतिमा का उचित अनुपालन करनेवाला होता है ।) वो नियम से बहोत शीलव्रत, गुणव्रत, प्राणातिपात आदि विरमण, पच्चक्खाण, पौषधोपवास और सामायिक, देशावकासिक का सम्यक् परिपालन करता है । (लेकिन) एक रात्रि की उपासक प्रतिमा का सम्यक् परिपालन नहीं कर शकता । यह चौथी (पौषध नाम की ) उपासक प्रतिमा बताई (जिसका उत्कृष्ट काल चार मास है ।) [४१] अब पाँचवी उपासक प्रतिमा कहते है । वो सर्व धर्म रूचिवाला होता है । ( यावत् पूर्वोक्त चार प्रतिमा का सम्यक् परिपालन करनेवाला होता है ।) वो नियम से कई शीलव्रत, गुणव्रत, प्राणातिपात आदि विरमण, पच्चक्खाण, पौषधोपवास का सम्यक् परिपालन करता है । वो सामायिक देशावकाशिक व्रत का यथासूत्र, यथाकल्प, यथातथ्य, यथामार्ग शरीर से सम्यक् तरह से स्पर्श करनेवाला, पालन, शोधन, कीर्तन करते हुए जिनाज्ञा मुताबिक अनुपालक होता है । वो चौदश आदि पर्व तिथि पर पौषध का अनुपालक होता है एक रात्रि की उपासक प्रतिमा का सम्यक् अनुपालन करता है । वो स्नान नहीं करता, रात्रि भोजन नहीं करता, वो मुकुलीकृत्त यानि धोती की पाटली नहीं बांधता, वो इस तरह के आचरण पूर्वक विचरते हुए जघन्य से एक, दो या तीन दिन और उत्कृष्ट से पाँच महिने तक इस प्रतिमा का पालन करता है । वो पाँचवी (दिन में ब्रह्मचर्य नाम की उपासक प्रतिमा ।) [४२] अब छठ्ठी उपासक प्रतिमा कहते है । वो सर्व धर्म रूचिवाला यावत् एक रात्रि की उपासक प्रतिमा का सम्यक् अनुपालन कर्ता होता है । वो स्नान न करनेवाला, दिन में
SR No.009788
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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