SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 153
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५२ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद जैसे कि ठंडे पानी में डूबोए, गर्म पानी शरीर पर डाले, आग से उनके शरीर जलाए, जोतबेंत-नेत्र आदि की रस्सी से, चाबूक से, छिवाड़ी से, मोटी वेल से, मार-मारकर दोनों बगल के चमड़े उखेड़ दे, दंड, हड्डी, मूंडी, पत्थर, खप्पर से उनके शरीर को कूटे, पीसे, इस तरह के पुरुष वर्ग के साथ रहनेवाले मानव दुःखी रहते है । दूर रहे तो प्रसन्न रहते है . इस तरह का पुरुष वर्ग हमेशा, डंडा साथ रखते है । और किसी से थोड़ा भी अपराथ हो तो अधिकाधिक दंड देने का सोचते है । दंड़ को आगे रखकर ही बात करते है । ऐसा पुरुष यह लोक और परलोक दोनों में अपना अहित करते है । ऐसे लोग दुसरों को दुःखी करते है, शोक संतप्त करते है, तड़पाते है, सताते है, दर्द देते है, पीटते है, परिताप पहुँचाते है, उस तरह से वध, बन्ध, कलेश आदि पहुँचाने में जुड़े रहते है। इस तरह से वो स्त्री सम्बन्धी काम-भोग में मूर्छित, गृद्ध, आसक्त और पंचेन्द्रिय के विषय में डूबे रहते है । उस तरह से वो चार, पाँच, छ यावत् दश साल या उससे कम-ज्यादा काल कामभोग भुगतकर बैरभाव के सभी स्थान सेवन करके कईं अशुभ कर्म इकट्ठे करके, जिस तरह लोहा या पत्थर का गोला पानी में फेंकने से जल-तल का अतिक्रमण करके नीचे तलवे में पहुँच जाए उस तरह से इस तरह का पुरुष वर्ग वज्र जैसे कईं पाप, क्लेश, कीचड़, बैर, दंभ, माया, प्रपंच, आशातना, अयश, अप्रतीतिवाला होकर पायः त्रसप्राणी का घात करते हुए भूमितल का अतिक्रमण करके नीचे नरकभूमि में स्थान पाते है । वो नरक भीतर से गोल और बाहर से चोरस है । नीचे छरा-अस्तरा के आकारवाली है । नित्य घोर अंधकार से व्याप्त है । चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र, ज्योतिष्क की प्रभा से रहित है । उस नरक की भूमि चरबी, माँस, लहँ, परू का समूह जैसे कीचड़ से लेपी हुई है । मलमूत्र आदि अशुचि पदार्थ से भरी और परम गंधमय है । काली या कपोत वर्णवाली, अग्नि के वर्ण की आभावाली है, कर्कश स्पर्शवाली होने से असह्य है, अशुभ होने से वहाँ अशुभ दर्द होता है, वहाँ निद्रा नहीं ले शकते, उस नारकी के जीव उस नरक में अशुभ दर्द का प्रति वक्त अहेसास करते हुए विचरते है । जिस तरह पर्वत के अग्र हिस्से पर पैदा हुआ पेड़ जड़ काटने से ऊपर का हिस्सा भारी होने से जहाँ नीचा स्थान है, जहाँ दुर्गम प्रवेश करता है या विषम जगह है वहाँ गिरता है, उसी तरह ऊपर कहने के मुताबिक मिथ्यात्वी, घोर पापी पुरुष वर्ग एक गर्भ में से दुसरे गर्भ में, एक जन्म में से दुसरे जन्म में, एक मरण में से दुसरे मरण में, एक दुःख में से दुसरे दुःख में गिरते है । इस कृष्णपाक्षिक नारकी भावि में दुर्लभबोधि होती है । इस तरह का जीव अक्रियावादी है । [३६] तो क्रियावादी कौन है ? वो क्रियावादी इस तरह का है जो आस्तिकवादी है, अस्तिक बुद्धि है, आस्तिक दृष्टि है । सम्यकवादी और नित्य यानि मोक्षवादी है, परलोकवादी है । वो मानते है कि यह लोक, परलोक है, माता-पिता है, अरिहंत चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव है, सुकृत-दुष्कृत कर्म का फल है, सदा चरित कर्म शुभ फल और असदाचरित कर्म अशुभ फल देते है । पुण्य-पाप फल सहित है । जीव परलोक में जाता है, आता है, नरक आदि चार गति है और मोक्ष भी है इस तरह माननेवाले आस्तिकवादी, आस्तिक बुद्धि, आस्तिक दृष्टि, स्वच्छंद, राग अभिनिविष्ट यावत् महान इच्छावाला भी हो और उत्तर दिशावर्ती नरक में उत्पन्न भी शायद हो तो भी वो शुक्लपाक्षिक होता है । भावि में सुलभबोधि होकर, सुगति
SR No.009788
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy