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________________ १२६ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद किया तो प्रायश्चित् न दे । यदि वो कहे कि दोष सेवन किया है तो प्रायश्चित् दे । वो साधु जिस प्रकार बोले इस प्रकार निश्चय ग्रहण करना । शिष्य पूछता है कि हे भगवन् ! ऐसा क्यों कहा ? तब गुरु उत्तर देते है कि, 'सच्ची प्रतिज्ञा व्यवहार' इस प्रकार है ।। [६१] एकपक्षी यानि कि एक गच्छवर्ती साधुओ को आचार्य उपाध्याय कालधर्म पाए तब गण की प्रतीति के लिए यदि पदवी के योग्य कोई न मिले तो ईत्वर यानि कि अल्पकाल के लिए दुसरों को उस पदवी के लिए स्थापन करना । [६२] कईं पड़िहारी (प्रायश्चित् सेवन करनेवाले) और कई अपड़िहारी यानि कि दोष रहित साधु इकट्ठे बँसना चाहे तो वैयावच्च आदि की कारण से एक, दो, तीन, चार, पाँच या छह मास साथ रहे तो साथ आहार करे या न करे, उसके बाद एक मास साथ में आहार करे। (वृत्तिगत विशेष) स्पष्टीकरण इस यह है कि जो पड़िहारी की वैयावच्च करते है ऐसे अपड़िहारी साथ आहार करे लेकिन जो वैयावच्च नहीं करते वो साथ में आहार न करे । वैयावच्चवाले भी तप पुरा हो तब तक ही सहभोजी रहे, या ज्यादा से एक मास साथ रहे । [६३] परिहार कल्पस्थिति में रहे (यानि प्रायश्चित् वहन करनेवाले) साधु को (अपने आप) अशन, पान, खादिम, स्वादिम देना या दिलाना न कल्पे । यदि स्थविर आज्ञा दे कि हे आर्य ! तुम यह आहार उस परिहारी को देना या दिलाना तो देना कल्पे यदि स्थविर की आज्ञा हो तो परिहारी साधु को विगई लेना कल्पे । [६४] परिवार कल्पस्थित साधु स्थविर की वैयावच्च करते हो तब (अपने आहार अपने पात्र में और स्थविर का आहार स्थविर के पात्र में ऐसे अलग-अलग लाए) पड़िहारी अपना आहार लाकर बाहर स्थविर की वैयावच्च के लिए फिर से जाते है तब (यदि) स्थविर कहे कि हे आर्य ! तुम्हारे पात्र में हमारे आहार-पानी भी साथ लाना । हम वो आहार करेंगे पानी पीएंगे तो पड़िहारी के साथ आहार पानी लाना कल्पे । अपड़िहारी को पड़िहारी के पात्र में लाए गए अशन आदि खाना या पीना न कल्पे लेकिन अपने पात्र में, हमारे भाजन या कमढ़ग-एक पात्र विशेष या मुट्ठी या हाथ पर लेकर खाना या पीना कल्पे । इस प्रकार का कल्प अपरिहारी का परिहारी के लिए जानना । [६५] परिहार कल्प स्थित साधु स्थविर के पात्र लेकर बाहर स्थविर की वैयावच्च के लिए जाते देखकर स्थविर उस साधु को ऐसा कहे कि हे आर्य ! तुम्हारा आहार भी साथ में उसी पात्र में लाना और तुम भी उसे खाना और पानी पीना तो इस प्रकार लाना कल्पे लेकिन वहाँ परिहारी को अपरिहारी स्थविर के पात्र में अशन आदि आहार खाना या पीना न कल्पे लेकिन वो परिहारी साधु अपना पात्र या भाजन या कमंडल (एक पात्र विशेष) या मुठ्ठी या हाथ में लेकर खाना या पीना कल्पे । इस प्रकार अपरिहारी के लिए परिहारी का कल्प आचार जानना-इस प्रकार मैं (तुम्हें) कहता हूँ । ( उद्देशक-३ ) [६६] साधु गच्छ नायकपन धारण करना चाहे तो हे भगवंत ! यदि वो साधु आयारोनिसीह आदि सूत्र संग्रह रहित है तो गच्छनायकपन धारण कर शके ? यदि ऐसा न हो तो गच्छ नायकपन धारण करना न कल्पे लेकिन यदि वो आयारो निसीह आदि सूत्र संग्रह सहित और शिष्य आदि परिवारवाला हो तो गच्छ नायकपन धारण कर शके ।
SR No.009788
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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