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________________ ११० आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद लिए उसके आसपास दिवाल, वाड आदि बनाए हो वो, द्वार यानि प्रवेश करने का या नीकलने का रास्ता, प्रवेश निर्गमन यानि आने-जाने की क्रिया । स्थंडिल भूमि, भिक्षाचर्या या स्वाध्याय आदि के लिए आते-जाते बार-बार साधुसाध्वी के मिलन से एक-दुसरे से संसर्ग बढ़े रागभाव की वृद्धि हो । संयम की हानि हो, लोगों में संशय हो यह सम्भव है । [१२-१३] हाट या बाजार, गली या महोल्ले का अग्र हिस्सा, तीन गली या रास्ते इकट्ठे हो रहे हो वैसा त्रिक स्थान, चार मार्ग के समागम वाला चौराहा, छ रास्ते के मिलनवाला चत्वर स्थान, आबादी के एक या दोनों ओर बाजार हो ऐसा स्थान, वहाँ साध्वी का रहना न कल्पे, साधु का रहना कल्पे । ( इस स्थान में साध्वी के ब्रह्मचर्य भंग की संभावना है इसलिए न कल्पे ) [१४-१५] बिना दरवाजे के खुले द्वारवाले उपाश्रय में साध्वी को रहना न कल्पे, साधु को रहना कल्पे, खुले दरवाजेवाले उपाश्रय में एक पर्दा बाहर लगाकर, एक भीतर लगाकर, भीतर की ओर धागेवाला या छिद्रवाला कपड़ा बाँधकर साध्वी का रहना कल्पे । (बाहर आतेजाते तरुण पुरुष, बारात आदि देखकर साध्वी के चित्त की चंचलता होनी संभवित है इसलिए न कल्पे 1) [१६-१७] साध्वी को भीतर की ओर लेपवाला घटी मात्रक (मातृ करने का भाजन) रखना और इस्तेमाल करना कल्पे लेकिन, साधु को न कल्पे । (साध्वी बन्द वसति में होती है इसीलिए परठने को जरुरी है । साधु को खुली वसति में रहना होता है इसलिए मात्रक जरुरी नहीं होता । ) [१८] साधु-साध्वी को वस्त्र की बनी हुई चिलिमिलिका (एक तरह की मच्छरदानी) रखना और इस्तेमाल करना कल्पे । [१९] साधु-साध्वी को जलाशय के किनारे खड़ा रहना, बैठना, सोना, अशन आदि आहार खाना, पीना, मल-मूत्र, श्लेष्म, नाक का मैल आदि का त्याग करना, स्वाध्याय, धर्म, जागरण करना या कायोत्सर्ग करना न कल्पे । [२०-२१] साधु-साध्वी को सचित्र उपाश्रय में रहना न कल्पे, चित्र रहित उपाश्रय में रहना कल्पे । (चित्र राग आदि उत्पत्ति का निमित्त बन शकता है । [२२-२४] साध्वी को सागारिक की निश्रा रहित उपाश्रय में रहना न कल्पे, लेकिन निश्रावाले उपाश्रय में रहना कल्पे, साधु का दोनों प्रकार से रहना कल्पे । (साधुवर्ग सशक्त, दृढ़चित् और निर्भय हो इसलिए कल्पे । ) [२५] साधु-साध्वी को सागारिक उपाश्रय में रहना न कल्पे, अल्प सागरिक उपाश्रय में रहना कल्पे । (सागारिक यानि जहाँ आगार- गृहसम्बन्धी वस्तु, चित्र आदि रहे हो ।) [२६-२९] साधु को स्त्री सागारिक उपाश्रय में रहना न कल्पे, साध्वीओ को कल्पे, साधुओ को पुरुष सागारिक उपाश्रय में रहना कल्पे, साध्वीओ को न कल्पे । [३०-३१] साधुओ को प्रतिबद्ध आबादी में रहना न कल्पे, साध्वीओं को कल्पे । ( उपाश्रय की दिवाल या उपाश्रय का किसी हिस्सा गृहस्थ के घर के साथ जुड़ा हो तो वो प्रतिबद्ध कहलाता है 1 )
SR No.009788
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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