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________________ जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-३/८१ १८१] सेनापति सुषेण ने राजा भरत के सैन्य के अग्रभाग के अनेक योद्धाओं को आपात किरातों द्वारा हत, मथित देखा । सैनिकों को भागते देखा । सेनापति सुषेण तत्काल अत्यन्त क्रुद्ध, रुष्ट, विकराल एवं कुपित हुआ । वह मिसमिसाहट करता हुआ-कमलामेल नामक अश्वरत्न पर-आरूढ़ हुआ । वह घोड़ा अस्सी अंगुल ऊँचा था, निन्यानवें अंगुल मध्य परिधियुक्त था, एक सौ आठ अंगुल लम्बा था । उसका मस्तक बत्तीस अंगुल-प्रमाण था । उसके कान चार अंगुल प्रमाण थे । उसकी बाहा-बीस अंगुल था । उसके घुटने चार अंगुलप्रमाण थे । जंघा-सोलह अंगुल थी । खुर चार अंगुल ऊँचे थे । देह का मध्य भाग मुक्तोलीसदृश गोल तथा वलित था । पीठ उपर जब सवार बैठता, तब वह कुछ कम एक अंगुल झुक जाती थी । पीठ क्रमशः देहानुरूप अभिनत थी, देह-प्रमाण के अनुरूप थी, सुजात थी, प्रशस्त थी, शालिहोत्रशास्त्र निरूपित लक्षणों के अनुरूप थी, विशिष्ट थी । हरिणी के जानुज्यों उन्नत थी, दोनों पार्श्व-भागों में विस्तृत तथा चरम भाग में स्तब्ध थी । उसका शरीर वेत्र, लता, कशा, आदि के प्रहारों से परिवर्जित था-घुड़सवार के मनोनुकूल चलते रहने के कारण उसे बेंत, छड़ी, चाबुक आदि से तर्जित करना, ताडित करना सर्वथा अनपेक्षित था । लगाम स्वर्ण में जड़े दर्पण जैसा आकार लिये अश्वोचित स्वर्णाभरणों से युक्त थी । काठी बाँधने हेतु प्रयोजनीय रस्सी, उत्तम स्वर्णघटित सुन्दर पुष्पों तथा दर्पणों से समायुक्त थी, विविध-रत्नमय थी । उसकी पीठ, स्वर्णयुक्त मणि-रचित तथा केवल स्वर्ण-निर्मित पत्रकसंज्ञक आभूषण जिनके बीच-बीच में जड़े थे, ऐसी नाना प्रकार की घंटियों और मोतियों की लड़ियों से परिमंडित थी, वह अश्व बड़ा सुन्दर प्रतीत होता था । मुखालंकरण हेतु कर्केतन मणि, इन्द्रनील मणि, मरकत मणि आदि रत्नों द्वारा रचित एवं माणिक के साथ आवद्धि से वह विभूषित था । स्वर्णमय कमल के तिलक से उसका मुख सुसज्ज था । वह अश्व देवमति से-विरचित था । वह देवराज इन्द्र की सवारी के उच्चैःश्रवा नामक अश्व के समान गतिशील तथा सुन्दर रूप युक्त था । अपने मस्तक, गले, ललाट, मौलि एवं दोनों कानों के मूल में विनिवेशित पाँच चँवरों को धारण किये था । वह अनभ्रचारी थाउसकी अन्यान्य विशेषताएँ उच्चैःश्रवा जैसी ही थीं । उसकी आँखें विकसित थीं, दृढ़ थीं, रोमयुक्त थीं-थीं | डांस, मच्छर आदि से रक्षा हेतु उस पर लगाये गये प्रच्छादनपट में स्वर्ण के तार गुंथे थे | तालु तथा जिह्वा तपाये हए स्वर्ण की ज्यों लाल थे । नासिका पर लक्ष्मी के अभिषेक का चिह्न था । जलगत कमल-पत्र जैसे वायु द्वारा आहत पानी की बूँदों से युक्त होकर सुन्दर प्रतीत होता है, उसी प्रकार वह अश्व अपने शरीर के लावण्य से बड़ा सुन्दर प्रतीत होता था । वह अचंचल था-उसके शरीर में स्फूर्ति थी । वह अश्व अपवित्र स्थानों को छोड़ता हुआ उत्तम एवं सुगम मार्ग द्वारा चलने की वृत्ति वाला था । अपने खुरों की टापों से भूमितल को अभिहत करता हुआ चलता था । अपने आरोहक द्वारा नचाये जाने पर वह अपने आगे के दोनों पैर एक साथ इस प्रकार ऊपर उठाता था, जिससे ऐसा प्रतीत होता, मानो उसके दोनों पैर एक ही साथ उसके मुख से निकल रहें हों । उसकी गति लाघवयुक्तथी था-वह जल में भी स्थल की ज्यों शीघ्रता से चलने में समर्थ था । वह प्रशस्त बारह आवर्तों से युक्त था, जिनसे उसके उत्तम जाति, कुल तथा रूप का परिचय मिलता था । वह अश्वशास्त्रोक्त उत्तम कुल प्रसूत था । मेघावी-था । भद्र एवं विनीत
SR No.009787
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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