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________________ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद राजा भरत द्वारा यों कहे जाने पर वार्ध की रत्न चित्त में हर्षित, परितुष्ट एवं आनन्दित हुआ । विनयपूर्वक राजा का आदेश स्वीकार किया । शीघ्र ही उत्तम पुलों का निर्माण कर दिया, तत्पश्चात् राजा भरत अपनी समग्र सेना के साथ उन पुलों द्वारा, उन्मग्ग्रजला तथा निमग्नजला नदियों को पार किया । यों ज्योंही उसने नदियां पार की, तमिस्रा गुफा के उत्तरी द्वारा के कपाट क्रोञ्च पक्षी की तरह आवाज करते हुए सरसराहट के साथ अपने आप अपने स्थान से सरक गये- । ५४ 1 1 [ ८० ] उस समय उत्तरार्ध भरतक्षेत्र में - आपात संज्ञक किरात निवास करते थे । वे आढ्य, दीप्त, वित्त, भवन, शयन, आसन, यान, वाहन तथा स्वर्ण, रजत आदि प्रचुर धन स्वामी थे । आयोग प्रयोग संप्रवृत्त थे । उनके यहाँ भोजन कर चुकने के बाद भी खानेपीने के बहुत पदार्थ बचते थे । उनके घरों में बहुत से नौकर-नौकरानियाँ, गायें, भैंसे, बैल, पाड़े, भेड़ें, बकरियाँ आदि थीं । वे लोगों द्वारा अपरिभूत थे, उनका कोई तिरस्कार या अपमान करने का साहस नहीं कर पाते थे । वे शूर थे, वीर थे, विक्रांत थे । उनके पास सेना और सवारियों की प्रचुरता एवं विपुलता थी । अनेक ऐसे युद्धों में, जिसमें मुकाबले की टक्करें थीं, उन्होंने अपना पराक्रम दिखाया था । उन आपात किरातों के देश में अकस्मात् सैकड़ों उत्पात हुए । असमय में बादल गरजने लगे, बिजली चमकने लगी, फूलों के खिलने का समय न आने पर भी पेड़ों पर फूल आते दिखाई देने लगे । आकाश में भूत-प्रेत पुनः पुनः नाचने लगे । आपात किरातों ने अपने देश में इन सैकड़ों उत्पातों को आविर्भूत होते देखा । वे आपस में कहने लगे- हमारे देश में असमय में बादलों का गरजना यावत् सैकड़ों उत्पात प्रकट हुए हैं । न मालूम हमारे देश में कैसा उपद्रव होगा । वे उन्मनस्क हो गये । राज्य-भ्रंश, धनापहार आदि की चिन्ता से उत्पन्न शोकरूपी सागर में डूब गये - अपनी हथेली पर मुंह रखे वे आर्तध्यान में ग्रस्त हो भूमि की और दष्टि डाले सोच-विचार में पड़ गये । तब राजा भरत चक्ररत्न द्वारा निर्देशित किए जाते मार्ग के सहारे तमिस्रा गुफा के उत्तरी द्वार से निकला । आपात कितों ने राजा भरत की सेना के अग्रभाग को जब आगे बढ़ते हुए देखा तो वे तत्काल अत्यन्त क्रुद्ध, रुष्ट, विकराल तथा कुपित होते हुए, मिसमिसाहट करते हुए कहने लगे - अप्रार्थित मृत्यु को चाहने वाला, दुःखद अन्त एवं अशुभ लक्षणवाला, पुण्य चतुर्दशी M जिस दिन हीन थी - उस अशुब दिन में जन्मा हुआ, अभागा, लज्जा, शोभा से परिवर्जित वह कौन है, जो हमारे देश पर बलपूर्वक जल्दी-जल्दी चढ़ा आ रहा है । हम उसकी सेना को तितर-भितर कर दें, जिससे वह आक्रमण न कर सके । इस प्रकार उन्होंने मुकाबला करने का निश्चय किया । लोहे के कवच धारण किये, वे युद्धार्थ तत्पर हुए, अपने धनुषों पर प्रत्यंचा चढ़ा कर उन्हें हाथ में लिया, गले पर ग्रैवेयक - बाँधे, विशिष्ट वीरता सूचक चिह्न के रूप में उज्ज्वल वस्त्र - विशेष मस्तक पर बाँधे । विविध प्रकार के आयुध, तलवार आदि शस्त्र धारण किये । वे, जहाँ राजा भरत की सेना का अग्रभाग था वहां पहुंचकर वे उससे भिड़ गये । उन आपात किरातों ने राजा भरत की सेना के अग्रभाग के कतिपय विशिष्ट योद्धाओं को मार डाला, मथ डाला, घायल कर डाला, गिरा डाला । उनकी गरुड आदि चिह्नों से युक्त ध्वजाएँ, पताकाएँ नष्ट कर डालीं । राजा भरत की सेना के अग्रभाग के सैनिक बड़ी कठिनाई से अपने प्राण बचाकर इधर-उधर भाग छूटे ।
SR No.009787
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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