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________________ १९८ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद सम्यकत्व के सहारे ज्ञान, तप, वीर्य और चारित्र रहे है । [६४] जैसे तू पदार्थ पर अनुराग करता है, प्रेम का अनुराग करता है और सद्गुण के अनुराग के लिए रक्त होता है । वैसे ही जिन-शासन के लिए हमेशा धर्म के अनुराग द्वारा अनुरागी बन । [६५] सम्यकत्व से भ्रष्ट वो सर्व से भ्रष्ट जानना चाहिए, लेकिन चारित्र से भ्रष्ट होनेवाला सबसे भ्रष्ट नहीं होता क्योंकि सम्यक्त्व पाए हुए जीव को संसार के लिए ज्यादा परिभ्रमण नहीं होता । [६६] दर्शन द्वारा भ्रष्ट होनेवाले को भ्रष्ट मानना चाहिए, क्योंकि सम्यक्त्व से गिरे हुए को मोक्ष नहीं मिलता | चारित्र रहित जीव मुक्ति पाता है, लेकिन समक्ति रहित जीव मोक्ष नहीं पाता । [६७] शुद्ध समकित होते हुए अविरति जीव भी तीर्थंकर नाम कर्म उपार्जन करता है। जैसे आगामी काल मे कल्याण होनेवाला है जिनका वैसे हरिवंश के प्रभु यानि कृष्ण महाराज और श्रेणिक आदि राजा ने तीर्थंकर नामकर्म उपार्जन किया है वैसे [६८] निर्मल सम्यक्त्ववाले जीव कल्याण की परम्परा पाते है । (क्योंकि) सम्यग्दर्शन समान रत्न सुर और असुर लोक के लिए अनमोल है । [६९] तीन लोक की प्रभुता पाकर काल से जीव मरता है । लेकिन सम्यकत्व पाने के बाद जीव अक्षय सुखवाला मोक्ष पाता है । [७०] अरिहंत सिद्ध, चैत्य (जिन प्रतिमा) प्रवचन-सिद्धांत, आचार्य और सर्व साधु के लिए मन, वचन और काया उन तीनों कारण से शुद्ध भाव से तीव्र भक्ति कर । [७१] अकेली जिनभक्ति भी दुर्गति का निवारण करने को समर्थ होती है और सिद्धि पाने तक दुर्लभ ऐसे सुख की परम्परा होती है । [७२] विद्या भी भक्तिवान् को सिद्ध होती है और फल देनेवाली होती है । तो क्या मोक्ष की विद्या अभक्तिवंत को सिद्ध होगी ? [७३] उन आराधना के नायक वीतराग भगवान की जो मनुष्य भक्ति नहीं करता वो मनुष्य काफी उद्यम करके डाँगर को ऊखर भूमि में बोता है । [७४] आराधक की भक्ति न करने के बावजूद भी आगधना की इच्छा रखनेवाला मानव बीज के बिना धान्य की और बादल बिना बारिस की इच्छा रखता है । [७५] राजगृह नगर में मणिआर शेठ का जीव जो मेंढ़क हुआ था उसकी तरह श्री जिनेश्वर महाराज की भक्ति उत्तम कुल में उत्पत्ति और सुख की निष्पति करती है । [७६] आराधनापूर्वक, दुसरी किसी ओर चित्त लगाए बिना, विशुद्ध लेश्या से संसार के क्षय को करनेवाले नवकार को मत छोडना । [७७] यदि मौत के समय अरिहंत को एक भी नमस्कार हो तो वो संसार को नष्ट करने के लिए समर्थ है ऐसा जिनेश्वर भगवान ने कहा है । [७८] बूरे कर्म करनेवाला महावत, जिसे चोर कहकर शूली पर चड़ाया था वो भी 'नमो जिणाणम्' कहकर शुभ ध्यान में कमलपत्र जैसे आँखवाला यक्ष हुआ था । [७९] भाव नमस्कार रहित, निरर्थक द्रव्यलिंग को जीव ने अनन्ती बार ग्रहण किए
SR No.009787
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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